बारिश में अकसर बच्चे कागज़ की नाव बना कर पानी में चलाते हैं। कैसा होता है वह दृश्य आइये पढ़ते हैं बाल कविता नाव चली ( Bal Kavita Naav Chali ) में :-

बाल कविता नाव चली

बाल कविता नाव चली

बादल चले गए काला-काला!
आसमान हो गए, नीला-नीला!

अरे चंदा सुनो माला!
घर से निकलो चलो नाला!

बारिस का पानी थम गयी है!
नाव हमारी बन गयी है!

रंग-बिरंगी,खुब रंगिला!
हरा, पीला लाल, नीला!

नाला पर फिर उनको छोड़ा!
लहरो ने फिर उनको मोड़ा!

रंग-बिरंगी नाव चली!
कागज की मेरी नाव चली

नाव चली रे नाव चली!
हिलती-डुलती नाव चली!

लहराती मस्तानी हवा चली!
पानी में बहती नाव चली!

छप-छप करती नाव चली!
डगमग- डगमग नाव चली!

डुब न चली नैया रे!
बोलो हैय्या रे ,हैय्या रे

नाव चली भई नाव चली!
न जाने किस गाँव चली!

लहरो को चिरती नाव चली!
लहरो से आगे नाव चली!

नाव चली रे नाव चली!
न जाने किसकी सशुराल चली!

इस पार चली उस पार चली!
बीच में मेंरी नाव चली!

सबसे आगे मेरी नाव चली!
देखो रे बंटी मेरी नाव चली!

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बिसेन कुमार यादव

यह कविता हमें भेजी है बिसेन कुमार यादव जी ने गाँव-दोन्देकला, रायपुर, छत्तीसगढ़ से।

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