कोरोना पर कविता

कोरोना पर कविता

यह कैसा आया है दौर,कि सभी सड़कें वीरान है।
बंद सभी दुकानें और सब गलियाँ भी सुनशान हैं।
मानवता पर देखो कैसे, संकट के बादल हैं छाए,
खुले में घूम रहे हैं पशु,और पिंजरे में कैद इंसान है।

कोरोना की महामारी से,सभी कितने ही हैरान हैं।
शहर जिन्हें कहा कल तक,आज बने शमशान हैं।
प्रकृति की अब जीत कहें या मानव की हार इसे,
खुले में घूम रहे हैं पशु,और पिंजरे में कैद इंसान है।

अपने कर्मों पर मानव को,रहा बड़ा अभिमान है।
धर्म विरुद्ध किये कर्मों को,समझा खुद की शान है।
मानव ने की भूल बड़ी,जो प्रकृति से खिलवाड़ किया,
खुले में घूम रहे हैं पशु,और पिंजरे में कैद इंसान है।

चंद किये अविष्कारों से,समझा खुद को भगवान है।
प्रकृति प्रेम मुश्किल किन्तु,क्षति पहुंचना आसान है।
मानव कर्मों का ही दोष है,जिसका यह परिणाम है,
खुले में घूम रहे हैं पशु,और पिंजरे में कैद इंसान है।

पढ़िए :- हास्य कविता “कोरोना और आप”


हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

“ कोरोना पर कविता ” ( Corona Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

Leave a Reply