Fauji Poem In Hindi एक फौजी जब अपने विवाह के लिए बारात लेकर जाने को तत्पर होता है तभी अचानक सरहद पर जंग लग जाने के कारन उसका बुलावा आ जाता है। ऐसे समय में वह अकेला अपने गुरु का स्मरण कर उनसे क्या प्रश्न करता है आइये पढ़ते हैं इस ( Fauji Par Hindi Kavita ) फौजी पर कविता “कफ़न बाँध के निकलूं मैं” :-

Fauji Poem In Hindi
फौजी पर कविता

फौजी पर कविता

क्या तुम्हें पता है ऐ गुरूवर
होगा क्या जीवन के पश्चात,
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

कहाँ पे देह का नाश लिखा है
होगा ये किस हाल में,
माटी में दफ़न करोगे मुझे
या देह जलेगी ज्वाल में,
कांधें में झुलाके मुझको भी
देना नव जीवन की सौगात।
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

पायेंगें जन्म दोबारा हम या
मिलेगा हमको भी क्या मोक्ष,
कहीं पे हम प्रत्यक्ष मिलेंगे
तो कहीं पे मिलेंगे परोक्ष,
ना जाने कौनसी योनि होगी
किसकी होगी जात।
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

मर जाती है देह हमारी
जीव कभी ना मरता है,
नित नए रंगमंच में ढ़लके
रूप अपना संवरता है,
वक्त-वक्त पे बदल के नौका
कितना देगा वो आघात।
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

रो रही है माँ भारती
याद करके सपूतों को,
लाज बचाने मरतें है
देख-देख कपूतों को
आग की लपटें भड़क उठी
कब होगी शान्ति की बात।
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

दर्पण का चटखना चुभता है
चुभता है टूटता श्रृंगार,
कंचन काया की बलि दे के
बरसूं उन पर बन अंगार,
वादों पे अपनें खरे नहीं तो
क्यों करते सत्ता की बात।
कफ़न बाँध के निकलूं मैं
या निकलूं लेके बारात।

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