एक शिष्य के जीवन में गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा होता है। शिष्य के जीवन को जो सही मार्ग दिखाता है वही तो गुरु कहलाता है। आइये पढ़ते हैं उन्हीं गुरु को समर्पित गुरु पर कविता :-

गुरु पर कविता

गुरु पर कविता

गुरु है ईश्वर समान
ले न पाया उनका कोई स्थान,
शिष्यों का करते वो कल्याण
सही मार्ग पर चलने का देते ज्ञान।

गुरु वह है, जो न करता भेदl
छोटा-बड़ा सबको रखता समेट
गुरु की महिमा अपरम्पार है,
आशीष हो गुरु का हर मुश्किल से बेड़ा पार है।

गुरु संग पवन सा रिश्ता हैl
अंधकार को रौशन कर जाता हैl
अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता हैl
वह गुरु ही है, जो अभिमन्यु बनना सिखाता है।

गुरु जगाता आत्मविश्वास को,
जो न समझता उनके बात को
आजीवन कोसता आपने भाग्य को,
कुछ न आए हाथ केवल पछतावे को।

गुरु ही माता,
गुरु ही पिता हैl
हर शिष्य सितारों की तरह चमकता रहें,
ऐसे उज्जवल भविष्य
की वह कामना करता है।

गुरु दर्पण है,
कमियों को दूर कर
अच्छाईयों को निखारता है।
गुरु की फटकार जो सह जाता है।
सरस्वती माँ का साथ वह पा जाता है।

गुरु है, तो शिष्य की पहचान है।
गुरु है, तो शिष्य की पहचान है।


रचनाकार  का परिचय
ट्विंकल वर्मा

 

यह कविता हमें भेजी है ट्विंकल वर्मा जी ने आसनसोल, पश्चिम बंगाल से।

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