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हिंदी कविता आख़िर क्यों होता है

हिंदी कविता आख़िर क्यों

आख़िर क्यों होता है ऐसा..
जब भी जन्म हुआ लड़की का
क्यों उसको देखा जाता है ऐसा
जैसे मानो उसने कोई
पाप कर दिया हो
क्यों कहा जाता है बचपन से
कि ये तेरा घर नही
तेरा घर तो तेरा ससुराल है

क्यों कुछ भी करने से पहले
हर बार पुछना पड़ता है
कभी माँ और बाप से ,
क्यों कुछ भी करने से पहले
पूछना पड़ता है पति से ,
क्यों कुछ करने से पहले
पूछना पड़ता है ससुराल से
आख़िर ऐसा क्यों होता है

आख़िर क्यों हर सीमा, हर मरियादा उसके लिये
आख़िर क्यों हर सवाल , हर पूछताछ उसके लिये
आख़िर क्यों ?

हर रोज़ लोगों की बुरी नज़रों से
कुचला जाता हैं
आख़िर क्यों ?
हवस का वो ही शिकार बने
आख़िर क्यों ऐसा होता हैं
हर पीढ़ा को सहन करके
फिर भी प्रशन उसी से हर बार होता है
उँगली उसी पे ऊठती है
आख़िर क्यों ऐसा होता?

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रचनाकार का परिचय

रुची

यह कविता हमें भेजी है रुचि जी ने दिल्ली से।

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