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हिंदी कविता सुन्दरता की देवी

हिंदी कविता सुन्दरता की देवी

सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।
बुरा ना मानो हे सुकुमारी,
तो कह दूं यौवन सुन्दर है।।

मुखमंडल पे निखार ऐसा,
चक्षु चौंधियांते हैं मेरे,
नैनों में मदहोशी ऐसी,
जैसे कोई चित्र उकेरे,
सत्य कहूं तो तेरे कारण,
ही सारा उपवन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

सुन्दरता परिभाषित होवे,
ऐसे शब्द कहां से लाऊं,
अंग अंग का रंग है सुंदर,
कितना सुन्दर तुम्हें बताऊं,
मन में इतने भाव भरे है,
तेरा हर वर्णन सुंदर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

नूर टपकता है चेहरे से,
केश खुले लहराते हैं,
बिजली कौंध जाय ऐसे की,
काले घन घहराते हैं,
क्षण भर भी तुम दिख जाओ तो,
समझूं की हर क्षण सुन्दर है ।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है ।।

तुम ईश्वर की वह रचना हो,
जिसको सब अपनाना चाहें,
खोकर जीवन के धन वैभव,
सिर्फ तुम्हें ही पाना चाहें,
बहुत हसरतें हैं ख्वाबों में,
ख्वाबों का चिंतन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है ।।

महक रही हो तुम सांसो में,
मदहोशी का दामन तेरा,
अरमानों मे अलख जगी है,
आओ आकर करो सवेरा,
तेरे जलवे में जलने की,
तडपन और जलन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

तेरे होने से ही शायद,
जीवन और जगत जुड़ता है
तुम्हीं नशा जब बनती हो तो,
खूब नशा सब पे चढ़ता है,
तेरी सोच में उलझा हूं मैं,
मुझमें ए उलझन सुन्दर है ।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है ।।

कौन ब्रह्म से नेह लगाए,
कौन मोक्ष को लक्ष्य बताए,
सगुण ब्रह्म का वैभव तुझमें,
क्यूं ना तुझमें प्रेम बढ़ाएं,
तेरे आलिंगन मे मानों,
भौतिक भव बंधन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

अधरों पर मुस्कान अलंकृत,
देखो साज रही परिधान,
कोमल कपोल गाल पे अपने,
दे दे मुझको चुंबन दान,
खिल जा गर मेरी बाहों मे,
तो समझूं जीवन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

तुम्हीं सुधारस हो रसिकों की,
तेरा बड़ा रसूख रहा है,
मुझको भी रसपान करा दे,
मेरा कंठ भी सूख रहा है,
तेरे मधु अधरों के पय को,
पिनें का प्रकरण सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

थोड़े जल की प्यास लिए,
जीवन जलधारा देख रहा हूं,
आतुर हूं बस खो जाने को,
इसीलिए दिल फेंक रहा हूं,
आवेदन स्वीकार करो अब,
प्रेमी मन का प्रण सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

फूलों सी कोमल काया का,
पूजन करना चाह रहा हूं,
कस्तूरी बिन मृग मन तरसे,
वैसे आज कराह रहा हूं,
तेरे संग में जाड़ा गर्मी,
ऋतु फागुन सावन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

निर्भीक निडर निष्पक्ष प्रिए,
मुझ प्रेमी का भी पक्ष धरो,
हर अदा से भरी नजाकत हो,
कुछ मेरे भी प्रत्यक्ष करो,
इस दुष्कर सी संघर्ष राह की,
ए सारी अड़चन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

तुम इतना जो इठलाती हो,
सच पूछो मन को भाती हो,
सभी ओर आकृष्ट नजारों,
में तुम ही तुम इतराती हो,
रुप तंत्र की सफल मंत्र हो,
तेरा नित्य सृजन सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

तुम जादू टोना रचती हो,
इंद्रजाल का छल दिखती हो,
चरित्र में कल्मश भरने को,
नित्य नया मौका लखती हो,
देवी दुर्गा लक्ष्मी काली,
सर्व रूप मिश्रण सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

अनन्त कोटि की व्याख्याओं से,
परिपोषित आह्लादित हो,
याचक हूं मै, दिल है मुझमें,
तुम मेरे दिल स्थापित हो,
अब बस तुम सर्वस्व लूटा दो,
प्यार भरा पोषण सुन्दर है।
सुन्दरता की देवी हो तुम,
तन सुन्दर है, मन सुन्दर है।।

पढ़िए :- कविता प्रेयसी का सौंदर्य वर्णन “यूं चेहरे से मुसकाई हो”


रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई

शिक्षा – स्नातक

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धन्यवाद।

This Post Has One Comment

  1. Avatar
    S. P.

    अति सुंदर कविता शानदार वर्णन

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