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हिंदी कविता : फतह कर अब

हिंदी कविता : फतह कर अब

मानव धमनियां , शिथिल भूमि पर, अब होने लगी।
संकट में, भूमि तेरी प्रभु, चितकार अब होने लगी।।

उमंग आशा की, नव तरंग सी, सुंदर दिखलाई हमें।
झुंड दुर्जन ने, निराशा की झलक सी, दिखलाई हमें।।

प्रण लिया था, हमने, विषाणु फतह कर अब दम लेंगे।
संकीर्ण सोच स्वामी वो, वो किला फतह, नहीं होने देंगे।।

सोचा था वाजिब, विश्वगुरू होंगे हम, अटल भी सिद्ध होगा।
विश्व धरा है, प्राण प्यारी सी हमें, नहीं सोचा, क्या उदय होगा?

शनै: शनै: हिंद पुत्रों के पग बढ़े, विश्व धरा, विजय की ओर।
हुंकार भरी तीव्र वेग से, युद्ध भीषण, मानव धर्म की ओर।।

विश्व धरा पर, अदृश्य विषाणु प्रसाद विशाल, विकट इतना।
नित्य वृद्धि, त्रिभुवन कृपा करों ,असहनीय पीड़ा हो, जितना।।

संक्रमण बदरा, घन घौर व्यापक , प्रकृति कोप प्रचंड जैसे।
धरा, संकट विकट, दीनानाथ, उद्धार करो, अब विलम्ब कैसे।।

मां विश्व धरा, जगत जननी, प्रकोप कैसा चाहूँ, ओर, छा गया।
मां, विश्व धरा, प्रभु तेरी वो, अस्तित्व मानव, खतरे में आ गया।।

मां भारती, मां विश्व धरा, प्राण प्रिय हो तुम, अंक ईष्ट खाक की ।
मां दयालु, मां सुर देवी, धरा धैर्य, उत्तम कृति हो तुम, नाथ की।।

मां आश्रय दात्री, मां पोषण करता, मां नमन तुम्हें, मां वंदन तुम्हें।
आरजू आशा प्रबल उत्साह से, प्रभु शरण तेरी हम, लाज अब तुम्हें ।।

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अंकेश धीमानयह कविता हमें भेजी है अंकेश धीमान जी ने बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर, उत्तर प्रदेश से।

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This Post Has One Comment

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    Abdul Saifi

    लेखक ने हालाते हाज़रा पर बहुत ही अच्छी कविता पेश की है और उस ईश्वर जगत जननी से अपनी पुरी श्रष्टि (धरा) के लिए दुआएं माँगी है कि आप ही हमारी रक्षा करने वाले हैं!
    इसके लिए सभी हिंदी प्याला के ज़िम्मेदार साथियों का शुक्रिया अदा करता हूँ कि छिपी हुई प्रतिभाओं को आप एक अच्छा प्लेटफॉर्म दे रहे हैं! और कवि जी को हार्दिक शुभकामनाएं कि आप और अच्छे लेखक बनें!

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