कविता पर्यावरण पर

कविता पर्यावरण पर

वसुधा का वह सुनहरा दृश्य
न जाने कहां लुप्त हो गया।
प्रकृति का मोहक सा नजारा
वृक्ष काटने से कहीं खो गया।।

सूखे हुए पेड़ों के निराश तने
आंसू बहा रहे हैं पतझड़ के।
सलिल नहीं मिलने के कारण
सूख रहे जीवन वृक्ष जड़ के।।

वृक्ष काटने के कारण मानव ने
संपूर्ण पर्यावरण को दूषित किया।
जिसने हमें जीवन प्रदान किया
घर में अनाज का भंडार भर दिया

उसको हम कर रहे है व्यथित
मानव का यह देखकर व्यवहार।
भगवान भी हो गया है शर्मिंदा
इसीलिए दे रहा हमें कष्ट अपार।।

अंबर से जल बरसना हुआ बंद
बूंद बूंद को तरस गया है मानव।
वृक्ष लगाना वह भूल गया है इस
छोटी सोच के कारण बना दानव।

अति शीतल सी पवन का बहना
अब लगता है जैसे व्यतीत खेल।
परंतु नन्हे से विटप लगाने से
पुनःहोगा मोहक प्रकृति से मेल।।

चलो जन-जन तक भेजे संदेश
एक वृक्ष लगाकर करो उपकार।
इसमें प्रकृति का स्वर्ग निहित है
व यही मानव जीवन का आधार।।

पढ़िए :- पर्यावरण संरक्षण पर कविता “पर्यावरण कैसे बचेगा”


नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुरैचया

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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