माँ बेटी का रिश्ता कविता ( Maa Beti Ka Rishta Kavita ) – मोबाइल और ससुराल पर कविताप्रिय पाठकों आज के मोबाइल के दौर में अधिकाँश रिश्तों में तनाव आम बात हो चुकी है। हमारे शास्त्रों के आधार पर शादी के पवित्र बंधन को पति-पत्नी के रिश्ते को जन्म-जन्मान्तर का साथ बताया गया है। लेकिन आज के दौर में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा हैं जबसे मोबाइल की तकनीकी बढ़ी है तबसे सारे रिश्तों में दूरियाँ आ रही हैं।

यह कविता ऐसे ही हालातों को बयाँ करती है कि कैसे एक बेटी का बसा बसाया संसार मोबाइल के चक्कर में बर्बाद हो गया, बेटी की शादी के पश्चात उसके मायके से सम्बंध सीमित दायरे में ही होने चाहिए।आइये पढ़ते हैं माँ बेटी का रिश्ता कविता :-

माँ बेटी का रिश्ता कविता

माँ बेटी का रिश्ता कविता - मोबाइल और ससुराल पर कविता

इक माँ के चक्कर में बिटिया का रिश्ता टूट गया।
इन मोबाइली बातो के चलते परिवारी नाता छूट गया।

भावनाओ से व्यथित थी मिला नया संसार।
सास-ससुर देवर-ननद से मिला भरपूर प्यार।
वक्त के साथ आ गया था व्यवहार में फर्क।
बिटिया से बहु बनी जीवन बन गया नर्क।

बिटिया से बहु बनने में किरदार माँ ने खूब निभाया था।
न कर कोई काज तू घर का माँ ने खूब सिखाया था।
घण्टो-घण्टो बात करे वह हर इक बात बतलाती थी।
सास-ननद के व्यवहार को वह बहुत क्रूर बतलाती थी

माँ-बिटिया को समझा रही तू बिटिया नहीं अकेली है।
हमने भी अपनी जेठानी से बहुत गोलियां खेली है।
घर तोड़ने की हर इक नीति उसकी माँ सिखलाती है।
बटवारे के किस्से उस तक माँ ही उसकी लाती है।

एक रोज वो भरी क्रोध में सास को ध्यान करा बैठी।
बटवारे की बात को घर में वो सबको ज्ञात करा बैठी।
हुआ क्लेश का प्रारंभ यहाँ से,घर में शान्ति कहा से आती।
बटवारे की बात बोलो माँ के घट से कैसे नीचे जाती।

रात-रात भर पुत्र व्यथित मन ही मन शर्मिंदा था।
मातृप्रेम पुत्र के भीतर केवल लेषमात्र का जिन्दा था।
हुई भोर तो सब जन घर के भीतर एकत्र हुए।
बहू-बेटा दोनों वृक्ष के केवल व्यर्थ पत्र हुए।

माँ जब बहू की आई तो इतरा-इतरा के बोल रही थी।
भोली सी सूरत वाली वह व्याधों सा मुख खोल रही थी।
बिटिया के पक्ष में वो पत्थर से रस निचोड़ रही थी।
पकड़ के हाथ बेटी-दामाद का बाहर को मोड़ रही थी।

फिर होना क्या था बेटा हाथो में कलेजा थमा गया।
छोड़ के माँ-बाप से रिश्ता बीवी के संग वो चला गया।
इक माँ के चक्कर में बिटिया का रिश्ता टूट गया।
इन मोबाइली बातो के चलते परिवारी नाता छूट गया।

रखती बहू कुछ दूरी मायके से, तो यह दिन आज नहीं आता।
माँ बाप से बेटे को जुदा करने का फिर रिवाज नहीं आता।
समझों बात को गहराई से मैं आज जो तुमसे कहता हूँ ।
पाश्चात्य संस्कृति और मोबाइल से कभी जीवन में साज नहीं आता ।

पढ़िए – पिता और बिटिया पर कविता “वो गुड़िया सबकी नैनों का तारा थी”


 

रचनाकार का परिचय :-

हिंमांशुनाम-हिमांशु प्रेमी
पता-लालगंज जिला रायबरेली ,उत्तर प्रदेश

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धन्यवाद।

 

This Post Has 2 Comments

  1. Avatar
    Suraj

    Wonderful lines

    Good learning by this good poem

    Thanks brother

    Keep it up

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