हरि सिंह नलवा पर कविता – महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल मे मुहम्मद शाह नाम के अफगानी लुटेरे ने भारत पर चढ़ाई की, और उसका प्रतिरोध करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह के महान योद्धा हरीसिंह नलवा ने कुशल नेतृत्व के साथ लड़ाई लड़ी। उनकी इसी वीरता को समर्पित है ” हरि सिंह नलवा पर कविता “

हरि सिंह नलवा पर कविता

हरि सिंह नलवा पर कविता

लाल ज्वाल के प्रखर शौर्य को दिनकर जब दहकाते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

जिन्होंने सर्वस्व लुटाकर राष्ट्रधर्म निर्वहन किये,
त्याग के प्रखर हूताशन में जो सारा जीवन हवन किये,
जो जीवन मूल्यों की रक्षा करने में निःस्वार्थ जिए,
जो भारत को भारत माता मान के सब पुरूषार्थ किए,
जो सांस्कृतिक रीति प्रीति में सारा जीवन खपा दिए,
धर्म सनातन की रक्षा में पौरुष सारा तपा दिए,
मानवता के सेवक बनकर परहित परम प्रकाश लिए,
और अराजक तत्वों का जो मूल समूल विनाश किए,
जिनके त्याग पे नतमस्तक है हिमगिर के उत्तुंग शिखर,
हमें सहेजे रखने में ना छोड़ी कोई कोर कसर,
उन वीरों के पदचिन्हों को हम आदर्श बनाते हैं।।
इस बलिदानी मिट्टी मे हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

हमें दिया उत्कर्ष और संघर्ष की पीड़ा झेल गए,
आन मान सम्मान के हक में निज प्राणों पे खेल गए,
बड़े बड़े बेदर्द खड़े हो चोट बहुत पहुंचाएं थे,
अपनों के खोने के गम में हमने कष्ट उठाए थे,
जिन नैनों के अश्रु धार से सातो सागर हारे थे,
मन ने ऐसा रुदन किया की फूट पड़े फव्वारे थे,
भगवा बाना बांध के सिर पे शत्रु को ललकारा था,
मृत्यु का पर्याय बना तो बरस पड़ा अंगारा था,
तम में गम में और सितम में हमने नित संघर्ष किये,
और इन्हीं भुजबल के बल पर चलकर नित आदर्श दिए,
राष्ट्र धर्म का मर्म समझ हम संतति को समझाते हैं ।।
उस बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

मातृभूमि की माटी हमको निज प्राणों से प्यारी थी,
भगवा पट की पुण्य पताका प्रेरक शक्ति पुजारी थी,
पुरखों की बलिदानी गाथा पल पल याद करेंगे हम,
राष्ट्रप्रेम के भावों का सब में संवाद भरेंगें हम,
हम नारों में गाएंगे कि हिन्दुस्थान हमारा है,
और सत्यनिष्ठा के श्रम से हमनें इसे संवारा है,
भूलेंगे ना भूतकाल ना गौरवशाली भावों को,
इतिहासों की स्मृतियों में दबी वीरगाथाओं को,
माटी के महिमामंडन का मंत्र नित्य स्वीकार किया,
कर्तव्यों की पराकाष्ठा से अपना अधिकार लिया,
असुर भक्षिणी खप्पर वाली को हम भोग लगाते हैं ।
इस बलिदानी मिटटी में हम अपना रक्त मिलाते है ।।

घर की चार दिवारी में हम शेरों को ना रखते हैं,
न्याय, धर्म औ शूरवीरता का सम्मान परखते हैं,
कलुषकार व्यवहार मिटाकर वीरों में संस्कार भरें,
दुर्गमता से क्षमता पूर्वक लड़ने में हूंकार भरें,
और याद कर लेते हैं संघर्ष भरी परिपाटी को,
चंदन सी शीतलता झरती ममता जैसी माटी को,
और याद कर लेते अठरह सौ सैंतीस की बेला को,
जब आक्रांता लूटपाट कर भर ले जाते थैला को,
एकछत्र पंजाब पे जब रणजीत सिंह विख्यात हुए,
और पूर्ण पंजाब खंड की सीमाओं के साथ हुए,
ईर्ष्या से अवसादग्रस्त जब शत्रु आंख दिखाते हैं ।
तब बलिदानी मिटटी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

मान रख लिया था राजा ने पूर्ण विजय विश्वास लिए,
रहा कुशल नेतृत्व प्रशासक वाहे गुरु अरदास लिए,
अफगानी मनमानी करके सरहद तक चढ़ आए थे,
अतिक्रमण की अभिष्टता में आगे तक बढ़ आए थे,
उन्हें नहीं अन्दाजा था की धर्म का पलड़ा भारी है,
गांडीवधारी अर्जुन के संग चक्र सुदर्शन धारी है,
जहाँ दधिची निज देहं त्याग कर धर्म देश की रक्षा की,
जहाँ भरत जी भ्रातृ प्रेम मे चौदह वर्ष प्रतीक्षा की,
वहां चले थे वे सब निष्ठुर मनमाना प्रस्ताव लिए,
कुटिल नीति के प्रपंच रच के ठगने वाला भाव लिए,
रिपुदल जब संग्राम सजा रीपुसूदन से टकराते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

दोस्त मुंहम्मद शाह जो केवल लूटपाट करवाता था,
निर्दोषों की हत्या करता फुले नहीं समाता था,
वो अहमद शाह अब्दाली की रणनीति अपनाये था,
वो अफगानी हमलावर भारत पे नज़र गड़ाए था,
धन के लोभी मन का क्रन्दन रुदन नहीं सुन पाते हैं,
मानवता का रुधिर बहाकर मन में खुशी मनाते हैं,
डाकू चोर लुटेरे सारे हत्यारे एक साथ चले,
आज असभ्य कबीले वाले लिए युद्ध उन्माद चले,
जैसे कोइ सांड़ घमंडी मद में होकर चूर चले,
जैसे कोई पागल गीदड़ भरके खूब गुरूर चले,
वो उन्मादी बने जिहादी औरों को काफ़िर कहें,
जबकि वो जग रीति प्रीति से खुद भी मुतनफ्फिर रहें,
कट्टर कायरता में जब जब जुर्म ढहाए जाते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त बहाते हैं ।।

थे राजा रणजीत सिंह भी घर के ब्याह समारोह में,
शहनाई के मधुर स्वरों की तैयारी थी आरोह में,
नौनिहाल सिंह के परिणय का गया निमंत्रण दूर तलक,
दुश्मन दल के खेमे में बस थी ऐसे अवसर की ललक,
अफगानी आक्रांताओं को लूट मचाने आना था,
भेज खबरिया दल बल छल कि रणनीति अपनाना था,
हाहाकरी हरिसिंह का पेशावर में डेरा था,
और वहां जमरूध को अरि दल घात लगाए घेरा था,
शक कुषाण मंगोल यवन औ मुग़लों ने मनमानी की,
सबने खैबर पख्तूनख्वा के दर्रे से नादानी की,
चुनौतियों के चंगुल में जब वीर नहीं घबराते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

कई बार के युद्धों में अफगानी सेना हारी थी,
मन उनका खिसियाया था यह उनकी बड़ी लाचारी थी,
वीर सिक्ख सरदारों की एक फौज वहां तैनात रही,
दुश्मन दल था घात लगाए तनातनी की बात रही,
खबर मिली जब पेशावर में हरी सिंह प्रस्थान किए,
और त्वरित एक निर्णय लेकर लश्कर को गतिमान किये,
और संदेशा भेज दिए झट राजा की रजधानी में,
थोड़ी सेना और भेज दो सीमा कि निगरानी में,
छ सौ सिंह खालसा वाले लड़ने को तैयार रहे,
जो बोले सो निहाल फिर सत-श्री-अकाल ललकार रहे,
वीरों के उत्साह में उत्सव जब यमराज मनाते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

अफगानों के भारी दल विष व्याल बने फुफकार रहे,
सिक्खों के सनमुख गिनती से तीस हजार के पार रहे,
हरिसिंह नलवा बचपन से दुश्मन को बहुत पछाड़े थे,
चौदह साल के बाल्यकाल में बाघ का जबड़ा फाड़े थे,
वीरों में भी वीर प्रखर वह काल बने मंडराते थे,
दुश्मन केवल नाम सुने तो खौफ खाय मर जाते थे,
सरदारों को जाय पुकारा खंग अंग धर लेना तुम,
और चमकती तलवारों में तेज धार कर लेना तुम,
सवा लाख से एक लड़ांवा रोष जोश भर लेना तुम,
कठमुल्लों की गर्दन उनके धड़ से ही हर लेना तुम,
मातृभूमि की रक्षा में सैनिक शोला बन जाते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

मात भवानी सिंह वाहिनी दुर्गा का आरोहन हो,
और भुजाओं में कृपाण का रक्त पिपासु यौवन हो,
प्राण जाए पर स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देंगे,
और सिखों पर नया मुगलिया राज नहीं छाने देंगे,
शैल शिखर वैश्या मुखमंडल और समर भू की गाथा,
कुछ दूरी से ही ये तीनों सबके मन को है भाता,
और वीरता के किस्से सुनने में अच्छे लगते हैं,
मगर वीर का फर्ज निभाने पौरुष सच्चे लगते हैं,
हर हर बम बम और भवानी माता के जयकारे थे,
और बज्र बाहों में जिनके बजरंगी हुंकारे थे,
संकट में जब चट्टानों से हम छाती टकराते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

बजी दुंदुभी रण भूमि में बजे नगारे धमक धमक,
तलवारों की तेज धार टंकार सुनाती चमक चमक,
भाला बरछी ढाल कृपाण औ चले कटारी कतर कतर,
धड़ से गर्दन कटे, रक्त से होती धरती लथर पथर,
रणभूमि के घोटक दल भी शोर सुनाते हिनन हिनन,
शस्त्रों के आघातों से सर्वत्र व्याप्त था खनन खनन,
गजराज रथी हौदे से ही हुंकार मचाते थे भीषण,
मानो मृत्यु मानवता का आज कर रही हो शोषण,
चामुण्डा भी लहूलुहान हो नरमुण्डों से खेल रही थी,
स्वर्गलोक से लहु कलश ले भर भर स्वयं उड़ेल रही थी,
जब धरती का धैर्य तोड़ने अराति दल बढ़ आते हैं ।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते है ।।

तलवारों के बज्र घाव से दुश्मन धीरज छोड़ रहे थे,
छ सौ सिंह खालसा वाले आँधी का रुख मोड़ रहे थे,
एक को मारें दो मर जाएं कइयों छुप छुप जान बचायें,
चलीं तोपखाने की तोपें ज्वलनशील हो गईं हवाएं,
सिंहों की संख्या का वो सब जो अनुमान लगाए थे,
मानों गिनती भूल गए थे गलत युद्व में आये थे
हुआ पराक्रम भारी उन पर मौका मिलते भाग चले,
हत्यारे भयभीत भगे लड़ने की इच्छा त्याग चले,
गिरा मनोबल एक तरफ तो बढ़ा मनोबल एक तरफ,
नारों में ललकारें गुंजी विजय दृश्य था सभी तरफ,
सीमाओं की मर्यादा जब दुश्मन समझ न पाते हैं ।।
तब बलिदानी मिट्टी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

ना भूलो संघर्ष समर्पण इतिहासों का पठन करो,
विष बाधाएं जो हो मग में वीरव्रती बन पतन करो,
सत्य सनातन धर्म संस्कृति का निर्भय होकर जतन करो,
जाग्रत हो संस्कार शौर्य का निशदिन इसका मनन करो,
अस्त्र शस्त्र को साध लो वीरों शास्त्रों का अध्ययन करो,
मातृभूमि के रक्षणार्थ तुम निज स्वार्थ्यों का हवन करो,
शुचिता का हो भाव जो मन मे तो मैलापन दफन करो,
धर्म धरा पर धैर्य का सम्बल लेकर हरि स्मरण करो,
संप्रभुता को सहेज करके राष्ट्र धर्म निर्वहन करो,
आगंतुक पीढ़ी के सन्मुख वीरों के यह कथन धरो,
जब अखंड को खंडित करने खल समुह चढ़ आते हैं ।।
तब बलिदानी मिटटी में हम अपना रक्त मिलाते हैं ।।

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रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

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धन्यवाद।

This Post Has 2 Comments

  1. Avatar
    Akash Rai

    Vah bhai shahab ekdam sandar hai kavita

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