प्रकृति वर्णन पर कविता

प्रकृति वर्णन पर कविता

झर-झर, झर झर, निर्झर, निशा नीर गिरे।
कल-कल, करतल ध्वनि, तरंगिनी करें।
चारू-चंचल, किरणें, मधुर समीर बहें।
मृदु भूमि, शशी पूर्ण चांदनी सलील लगे।।

झर-झर, झर-झर, झरने, रह, रह मधु नीर बहें।
भूधर, उपवन, विचरण कर, सिंह शूर हिंद खड़े।
सहज, समीर, सिमर प्रभु को वृक्ष सहज हिले।
झिल-मिल, झिल मिल, झपक नक्षत्र अंबर चलें।

झर-झर, झर-झर झरने से मधु सरोवर, नीर बहे।
निशा में जाग नश्वर प्राणी, नौका भ्रमण को चलें।
चप्पु चले, चप-चप, मल्लाह लक्ष्य, उदक को बढ़े।
कच्छप जल में गति तीव्र वेग से सिस-सिस सि बढ़े।
उछल-कूद, सर-सर, सर सर नीर तपाक मीन पड़े।

झर-झर, झर-झर, झर-झर ध्वनि सुंदर नीर बहे।।
सुदृढ़ विराट, वृक्ष लता लिपटे, उरग उध्र्व खड़े।
दृश्य, मनोहर कृति ईष्ट, अनुपम हृदय सहज हिले।
वियोग बिन, प्रिय-प्रियतम पीयूष चक्षु नीर पड़े।।

झर-झर, कर-तल चित्त मोहक ध्वनि नीर सरल बहें।
व्यथा मनो, नश्वर प्राणी, मृदु मूरत तुल्य उध्र्व खड़े।
शीश झुका नमन नाथ: तुम्हें, प्रिय वियोग न बैरी पड़े।
मधुर संबंध हो सदा सुदृढ़, निर्मल-सरल, नाथ आशीष हमें।
विपत्ति-आनंद, ऋतु, सदा न्यौछावर मानो अडिग शैल खड़े।
झर-झर कर-तल कर तल……..

पढ़िए :- पर्यावरण संरक्षण पर कविता “वसुधा के साथ किया व्यापार”


अंकेश धीमानयह कविता हमें भेजी है अंकेश धीमान जी ने बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर, उत्तर प्रदेश से।

“ प्रकृति वर्णन पर कविता ” ( Prakriti Varnan Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

This Post Has One Comment

  1. Avatar
    Abdul Saifi

    बहुत ही अच्छी कविता लेखक ने लिखी है!
    इसके लिए लेखक के साथ साथ हिन्दी प्याला के लोग भी धन्यवाद के पात्र हैं, कि आपके इस सराहनीय कदम से सभी को अच्छा पढ़ने को मिल रहा है!

Leave a Reply