प्रजाशासक पर कविता :- प्रजा-शासक मौन है

आप पढ़ रहे हैं प्रजाशासक पर कविता :- प्रजाशासक पर कविता तेरे अन्दर मेरे अन्दर, कुछ बात दबी है सीने में। प्रजा-शासक मौन है, क्या मजा आ रहा जीने में।। जुबां खुली जब भी, कलंकित देशद्रोही माना खंडन किया जब भी, भड़काऊ विद्रोही माना। सोम रस तो नहीं मांगता, जहर…

Continue Readingप्रजाशासक पर कविता :- प्रजा-शासक मौन है

मंच पर हिंदी कविता :- मिला ऐसा मंच ये

आप पढ़ रहे हैं मंच को समर्पित मंच पर हिंदी कविता :- मंच पर हिंदी कविता शब्दों के भावों से मचल ही जाते हैं तभी हम जैसे दिल पिघल जाते हैं नदियों के साथ यूं बहते चले जायें सीमा लांघ तालाब से निकल जाते हैं। अभी तो चट्टानों का ही…

Continue Readingमंच पर हिंदी कविता :- मिला ऐसा मंच ये