हिंदी कविता – कंपन्न | कम्पन्न बन के श्वास से

आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता - कंपन्न हिंदी कविता - कंपन्न कम्पन्न बन के श्वास से चीखें सुनायी काल, है रात्रि का विष वेला यहाँ होती प्रभा बिछायी जान। नवचेतना है आयी अभी लिपटी हुयी अदृश्यनाल, निज आशियाँ निर्मित यहाँ है दंभ निति उसकी चाल। बनते मुसाफिर है यहाँ…

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