Rakshabandhan Par Kavita प्रिय पाठकों आज की कविता है, रक्षाबंधन पर कविता -कहने को बहने बहुत है, एक भाई की बहन के लिए जिसकी बहन के स्वभाव में वक़्त और हालातों के चलते परिवर्तन आ गया है और अब दोनों भाई बहन में कोई बातचीत नहीं होती है , हम जानते हैं की यह गलत हैं किन्तु आज के दौर में यह कोई चौकानें वाली बात नहीं है , कभी कभी छोटी छोटी बातों से ही रिश्तों में तनाव आ जाता है जो कि बहुत बड़ा हो जाता है और उसे ठीक कर पाने में बहुत वक़्त हो जाता है।

तो इस कविता के माध्यम से कवि अनमोल रतन जी बताना चाह रहे हैं कि रक्षाबंधन के दिन सूनी कलाई देखकर बहन की याद आ ही जाती है, चाहे रिश्तों में कितनी भी अनबन क्यों न हो तो आइये पढ़ते हैं ( Rakshabandhan Par Kavita ) –

Rakshabandhan Par Kavita
रक्षाबंधन पर कविता

Rakshabandhan Par Kavita

लीन अपने ही सुखो में कौन जाने पीर पराई।
कहने को बहने बहुत है किन्तु सूनी है कलाई।।

हाँ मैं अभागा हूँ भाई
सोचकर ये नींद न आई
आओ राखी बांधो बहना
सूनी हैं मेरी कलाई
क्या बचा नही अब जग में दया प्रेमं भलाई।
कहने को बहने बहुत हैं किन्तु सूनी हैं कलाई।।

दर्द अब किसको सुनाये
जख्म ये किसको दिखाये
जब चलते हैं पैसे से रिश्ते
तो वो प्रीत से कैसे निभाये
टूटे रिश्ते जुड़ते नही मारो कितनी भी सिलाई।
कहने को बहने बहुत हैं किन्तु सूनी हैं कलाई।।

प्यार झूठा वो जताता
फिर भी दिल मान जाता
हर एक रक्षाबंधन में पूछो
रतन कैसें दिन बिताता
पहले लाती थी राखी आज कैंसी प्रीत निभाई
कहने को बहने बहुत हैं किन्तु सूनी हैं कलाई।।

लीन अपने ही सुखो में कौन जाने पीर पराई।
कहने को बहने बहुत हैं किन्तु सूनी हैं कलाई।।

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रचनाकार का परिचय

कवि अनमोल रतन

यह कविता हमें भेजी है कवि अनमोल रतन जी ने रायबरेली, उत्तर प्रदेश से।

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