यह कविताएं हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

हिंदी कविता अंतरिक्ष | Hindi Kavita Antriksh

प्रस्तुत है रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित " हिंदी कविता अंतरिक्ष " :- हिंदी कविता अंतरिक्ष आओ मन के अंतरिक्ष मेंसैर कर लें। चांद की शीतल प्रभाचित् में पिरोए आज हमशांत कर चित् चेतनाजगमग बनाए रात हम, बन बैरी तम के गमों सेबैर कर लें,आओ मन के अंतरिक्ष मेंसैर कर लें। सूर्य…

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प्रेरणादायक कविता आईना | Prernadayak Kavita Aaina

Prernadayak Kavita Aaina - आप पढ़ रहे हैं प्रेरणादायक कविता आईना :- Prernadayak Kavita Aainaप्रेरणादायक कविता आईना खोजता है किसको क्षण क्षणढूढ़ता है किसको पल पल बह रही गर आंधी दुःख कीकष्ट का कंकड़ थपेड़ाछा रही है मंजिल पथ परधूल धूसितमय अंधेरा मानो मन का हीलता जड़टूटते हों स्वप्न साराकांपते…

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आम पर कविता | Mango Poem In Hindi | Aam Par Kavita

Mango Poem In Hindi - आप पढ़ रहे हैं रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित " आम पर कविता " :- Mango Poem In Hindiआम पर कविता कहा आम तरबूजे सेसुन लो मेरी बातफलों का राजा आम मैंतेरी क्या औकात गांव शहर घर-घर में मेरीसबमें है पहचानबड़े शान से बच्चे बूढ़ेकरते…

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बेटी पर कविता – मन की मार | Beti Par Kavita

प्रस्तुत है रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित " बेटी पर कविता - मन की मार " :- बेटी पर कविता - मन की मार बन अभिशाप जगत में बेटीमैं छिप कर क्यों जीवन जीतीकिसे सुनाऊं कौन सुनेगा किससे दिल की बात कहूं मैं?कब तक मन की मार सहूं मैं? मुझसे…

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कविता मन की बात | Kavita Man Ki Baat

रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित " कविता मन की बात " कविता मन की बात जहां चाहिए ढेरों लालसाढेरों याचना ढेरों उल्लासपर बैठे लोग दे रहे थेएक दूसरे को ढाढस दिलासा मात। सब दु:खी थेओंठो पर बिना लिए मुस्कानबैठकर एक साथकर रहे थे मन की बात। खूब कमाओ बना लोजिंदगी…

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होली के रंगों में कविता | Holi Ke Rangon Me Kavita

होली के रंगों में कविता - होली को समर्पित रामबृक्ष कुमार जी कि कविता :- होली के रंगों में कविता होली के रंगों मेंमन के उमंगों मेंलोगों के संगों में,झूम झूम जाएं हमघूम घूम गाएं हम। होली में हो लें हम एक-दूसरे के। ऋतु के वसंतों मेंमदमस्त अंगों मेंफूलों के…

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Holika Dahan Par Kavita | होलिका दहन पर कविता

Holika Dahan Par Kavita - प्रस्तुत है रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित होलिका दहन पर कविता :- Holika Dahan Par Kavitaहोलिका दहन पर कविता आज दहन की रातचांद से सुंदर मुखड़े काउठेगी जन ज्वाला अंगारजलेगी एक नारी सम्मानउठेगी गंगा में ज्वार आजहोगी हुल्लड़ो की सौगात।आज दहन की रात वह भी…

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बेरोजगारी पर कविता | Berojgari Par Kavita

बेरोजगारी पर कविता - देश की एक समस्या " बेरोजगारी " पर रामबृक्ष कुमार जी की कविता :- बेरोजगारी पर कविता आदि अंत हो या अनन्त होमिटी कहां है क्षुधा किसी कीशायद इसी  लिए  ही ईश्वरकर खाने के लिए हाथ दी इन हाथों से मेहनत करनासीखा मैंने इस आशा सेसपनो…

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हिंदी कविता जागो अब | Hindi Kavita Jaago Ab

रामबृक्ष कुमार जी की " हिंदी कविता जागो अब " हिंदी कविता जागो अब जागो अब जीवन लो तराश ।नीली  धरती  से  गगन  बीचमंगल जीवन  रेखा  लो  खींचकलमयुग कलयुग का इतिहास ।जागो !अब  जीवन  लो  तराश । धरती गगन समूचे जल को,नाप लिया जीवन के पल कोशिक्षा  से  है  जीवन  विकास ।जागो  !अब  जीवन  लो  तराश । न कृपा श्राप वरदान कोई      न स्वर्ग वैतरणी  दान कहींसच का करोगे कब एहसास ?जागो ! अब  जीवन  लो  तराश । करे न विधवा शुभ कार्य शुरूयह अपमान क्यों स्वीकार करूकब   ये    मिटेगा   अंधविश्वास।जागो !अब  जीवन  लो  तराश । पत्थर पर दूध गिराते होपर किसकी क्षुधा मिटाते हो?सत्य का कब होगा आभास?जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।   क्या छुआ छूत क्या भेदभावनफरत का जलता क्यूं अलाव?मानवता   का   हो   रहा   हास।जागो !अब  जीवन  लो  तराश । मन दिल का ईश्वर मात पिताहैं श्रद्धा ममता के बृक्ष लताफिर क्यों होता है परिहास। जागो !अब  जीवन  लो  तराश । हाथों की रेखा भाग्य नहीहै कर्म इष्ट सौभाग्य यहीजग में भर दो जगमग प्रकाश ।जागो !अब  जीवन  लो  तराश । सद्भाव आचरण प्रेम कृत्यधरती को बनाते स्वर्ग नित्यकर लो मन में सुकर्म सुवास ।जागो !अब जीवन लो तराश । पढ़िए :- प्रेरणादायक कविता " प्रखर धूप में " रचनाकार का परिचय यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से। “ हिंदी कविता जागो…

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Tiranga Jhanda Poem In Hindi | तिरंगा पर कविता

Tiranga Jhanda Poem In Hindi - आप पढ़ रहे हैं तिरंगा पर कविता :- Tiranga Jhanda Poem In Hindiतिरंगा पर कविता पिता कौन क्यों है लेटा ?ओढ़े कफ़न तिरंगा,कंधों पर ले चार खड़े हैंआंख से बहती गंगा, बेटा बुला रहा है उनकोकरुणा से रो रोकर,गिरी धरा पर मां शिथिलसिंदूर अश्रु…

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Naye Saal Par Kavita | नए साल पर कविता – आया पावन सवेरा

Naye Saal Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं नए साल पर कविता :- Naye Saal Par Kavitaनए साल पर कविता नये साल का आया पावन सवेरापावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा। फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायेंभौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायेंधरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरवआओ मन…

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मन की व्यथा पर कविता | माता-पिता की वेदना पर लिखी कविता

मन की व्यथा पर कविता - आप पढ़ रहे हैं Man Ki Vyatha Par Kavita :- Man Ki Vyatha Par Kavitaमन की व्यथा पर कविता छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। समझा था जीवन की ज्योति सा बनकर,बनेगा सहारा बुढ़ापा तिमिर में।कट जाएगा अवशेष जीवन कठिन पलपलकों का सपना सजाया था दिल में । कहूं दोष खुद का या कोसूं मुकद्दर,बना आज जीवन कुम्हलाता नीरज ।दीपक समझकर संभाला था जिसको,जलाया मुझे बन दुपहरी का सूरज। बताऊं कैसे व्यथा अपने मन की ,बिठाऊं कहां से कहां अपनेपन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को । कर त्याग केंचुल सा जननी की ममता,गया बन निर्मम किस सपने में खोये ।न बन बेखबर हो सजग मेरे प्यारे,गया टूट बन्धन तो फिर जुड़ न पाये । किया क्या न पूजा दुआ तेरे खातिर,कर दी आहूति खुद के सपने सजोये ।बस तू ही था सच्चे सपने निराले,हम रखे सदा तुझको दिल से लगाये । सदा सोचता कि भूल जाऊं किये को,भीगी आंख से देखता हूं गगन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को ।  अभिशाप बन न तू इकलौता औलाद,क्यों बन गया है तु हत्यारा जल्लाद।खुद सोंच गया छोड़ यदि तेरी दुनिया,पायेगा फिर न पिताजी का आह्लाद।। मैं देखा करतातेरा राह पल पल,हुआ शाम कब आयेगा नेत्र-तारा ।तनहा ठगा साहो जाता बेगाना,तु था मेरी दुनिया, प्यारा, दुलारा । मिलने को तुमसे तरसता हूं मैं अब ,बैठ पास ले रोक दिल के ज़लन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को । मां, बोलो कम आप खुद को संभालों सिवाय आपके कौन सहारा मेरा ।दिल को पत्थर बना समझो मैं बांझ थी,खाके दो जून रोटी रहें हम पड़ा । न सताओ कभी आपने मां बाप को,धर के मंदिर में बैठे भगवान है ।कर लो तीरथ बरतसब जगह घूम कर,सबसे पावन ही इनके चरण धाम है जीना है जीवन यह अंतिम घड़ी तक,बिसारा भले है पर देगा कफन तो ।भुलाते रहो तब तलक मन की पीड़ा,जब तक न जाते हैं दूसरे वतन को। जब गैर होते हैं अपनों से बढ़करहम इसकेहैं अपने पराये नहीं हैभले छोड़ कर वह रहे दूर हमसेहम उसके बिना रह पाये नहीं है। बने वह हमारे लिए नागफनी साहमें तुलसी बनके रहना पड़ेगाछोटी सी जीवन बड़ी हो चली हैमिला गर है जीवन तो जीना पड़ेगा। बेटी गर होती तो वह चाह करतीजी आज करता है तुमसे मिलन को छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। इतना भला क्या कि रखा है घर मेंनही भेज देता किसी आश्रम मेंदेखा है बहुतो के लाशों का सिदृदतलाशों के उपर से बिकते कफ़न को छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। पढ़िए…

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