रामबृक्ष कुमार जी की ” हिंदी कविता जागो अब “

हिंदी कविता जागो अब

हिंदी कविता जागो अब

जागो अब जीवन लो तराश ।
नीली  धरती  से  गगन  बीच
मंगल जीवन  रेखा  लो  खींच
कलमयुग कलयुग का इतिहास ।
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

धरती गगन समूचे जल को,
नाप लिया जीवन के पल को
शिक्षा  से  है  जीवन  विकास ।
जागो  !अब  जीवन  लो  तराश ।

न कृपा श्राप वरदान कोई      
न स्वर्ग वैतरणी  दान कहीं
सच का करोगे कब एहसास ?
जागो ! अब  जीवन  लो  तराश ।

करे न विधवा शुभ कार्य शुरू
यह अपमान क्यों स्वीकार करू
कब   ये    मिटेगा   अंधविश्वास।
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

पत्थर पर दूध गिराते हो
पर किसकी क्षुधा मिटाते हो?
सत्य का कब होगा आभास?
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

  क्या छुआ छूत क्या भेदभाव
नफरत का जलता क्यूं अलाव?
मानवता   का   हो   रहा   हास।
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

मन दिल का ईश्वर मात पिता
हैं श्रद्धा ममता के बृक्ष लता
फिर क्यों होता है परिहास। 
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

हाथों की रेखा भाग्य नही
है कर्म इष्ट सौभाग्य यही
जग में भर दो जगमग प्रकाश ।
जागो !अब  जीवन  लो  तराश ।

सद्भाव आचरण प्रेम कृत्य
धरती को बनाते स्वर्ग नित्य
कर लो मन में सुकर्म सुवास ।
जागो !अब जीवन लो तराश ।

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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