आप पढ़ रहे हैं रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित आंगन पर कविता ” बांटों ना आंगन बन्धु ” :-

आंगन पर कविता

आंगन पर कविता

बांटों ना आंगन बन्धु! आज 
तोड़ो ना रिस्तें मधुर आज। 

तुलसी सी मां-ममता महके
घर का कोना कोना गमके
जीवन की ज्योति सदा चमकें
बजता है जिसमें प्रेम साज। 

बांटों ना आंगन बन्धु! आज 
जिस आंगन में चलना सीखे
रज जिसकी पग माथे खींचे 
खुद का बचपन पलते देखे,
देता है जिसका स्वर्ग दाज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

जब अपनें कोई आते थे
तब विस्तर यहीं लगाते थे 
अपनी बीती बतलाते थे,
घण्टों घण्टों सब छोड़ काज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

 अपनों के संग अपनों के बिन
लगता सूना आंगन दिन दिन 
अमन शांति सब जाता है छिन 
करो ना अशान्ति का आगाज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

घर के चिड़ियों का कलरव धुन
मन होता खुश प्रातः यह सुन
घर कैसा होगा आंगन बिन 
आंगन नही यह घर का नाज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

रवि प्रकाश आंगन में पड़ता
आंगन हरा भरा सा लगता
लगता जीवन में सुख झड़ता
बटता आंगन बटता मिज़ाज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।

पढ़िए :- परिवार पर कविता ” रहता सदैव परिवार “


रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

“ आंगन पर कविता ” ( Angan Par Kavita ) आपको कैसी लगी ? “ आंगन पर कविता ” ( Angan Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

Leave a Reply