मुलाकात पर कविता | Mulakat Par Kavita

पढ़िए रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित मुलाकात पर कविता :-

मुलाकात पर कविता

मुलाकात पर कविता

चलता गया
चलता रहा 
मिलता रहा
हर लोग से,
जीवन सफ़र
कटता रहा
मुड़ता गया
हर मोड़ पे,

जितने मिले
जैसे मिले
अपने मिलें
या गैर हो,
कहता गया
देता गया
शुभकामना
सब खैर हो ,

आता  गया 
फिर मोड़ था
डगमग डगर
का अंत वह,
डूबता दिन 
था अंधेरा
आंधी चली 
अब मंद बह,

दिखता नही
था सामने
उठता नहीं
अब पांव था,
टूटता अब
सांस भारी
उजड़ा हुआ
सा ठांव था,

देखते ही
सामने थी
एक काली
छाया खड़ी,
हाथ पकड़े
दे सहारा
चुपचाप ले
मुझको चली,

जीवन सफ़र
के अंत में
अंतिम यही
मिलना रहा,
अपना सभी
या गैर सब
सबको यही
कहना रहा,

अच्छा रहा
सच्चा रहा
वह मौत की
अंतिम घड़ी,
ना चाह थी
ना हाय थी
ना दुःख से
जीवन भरी। 

पढ़िए :- प्रेम भरी कविता ” मुझसे दूर न जाना”


रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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