हिंदी कविता मां की ममता
हिंदी कविता मां की ममता
सुबह एक दिन अपने घर में
छत के एक अलग कोने में
एक घोंसला सजा सलोना
तिनकों के ताने बाने में
मां की ममता का न्योछावर
देखा मानो रसखानों में,
मां लाती चुग चुग कर दाना
बिखरे फैले मैदानों में
चीं चीं करते चोंच खोलते
खाने को वे उन दानों को
पाल रही थी क्या एक मां
निज स्वार्थ हेतु नन्हीं जानों को?
स्वार्थ कहूं कि प्यार कहूं!
या ममता भरा दुलार कहूं!
उस ममता में स्वारथ कैसा?
कैसे यह स्वीकार करुं!
मां की सेवा को देखा हूं
ममता भरी प्राणों में
ममता की कोई मोल नही है
पशु पक्षी इंसानों में
नन्हा सा वह तिनके भीतर
तिनका ही जिनका संसार
सीख लिया था मां से अपने
तनिक तनिक पूरा संस्कार
नन्हा नन्हा रहा कहां अब
जीवन के उन सीखों में
प्रकृति भर देती है सबमें
ज्ञान बुद्धि अनदेखो में,
बेबस जब लाचार पड़ी मां
चुन ना सकती थी दाना
वह बच्चा फिर फर्ज निभाया
मां को दे देकर खाना
तिनकों के उस गछी महल में
अपनेपन का प्यार मिला
धन्य है ईश्वर तेरी सृष्टि
प्यार भरा संसार मिला।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
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