निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।

उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।

कविता विदाई और स्वागत | नाव वर्ष के आगमन को समर्पित कविता

आप पढ़ रहे हैं कविता विदाई और स्वागत :- कविता विदाई और स्वागत ढलती शाम और डूबता सूरज..रात्रि के दरवाजे परआखिरी दस्तक दे..रहे हैं। सूर्य का ताप.. जैसे.. अंँधेरी रात नेलील लिया हो। हर लिया होबीते साल की बाधाओं नेजैसे..सारा तेज.. । लबालब भरी सजल आंँखें..तकती हैं..बीते साल डूबे ..सभी…

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नदी पर कविता | Nadi Par Kavita | Beautiful Poem On River

Nadi Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं नदी पर कविता :- Nadi Par Kavitaनदी पर कविता काव्य की जननी,प्राण प्रदायिनी नदियां..लेखनी बना लेती है सूर्य कीअनगिनत रश्मियों और चन्द्रकिरणों को । लिखा जाता है अद्भुत काव्य प्रकृति की छांँव तले।अपने काव्य से हिमखंडों को पिघला…बह निकली हैं नदियां जीवनदायनी बन।चंचल, उन्मुक्त, खिलखिलाती… लहराती. .…

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Koyal Par Kavita | कोयल पर कविता – कोकिला

Koyal Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं कोयल पर कविता " कोकिला " Koyal Par Kavitaकोयल पर कविता कानों में मिश्री सी घोले,काली ' कोकिला ' मीठा बोले। मीठी तान सुनाती हैगुण अमूल्य समझाती है। पतझड़ हो या रहे बसंत,सुर में मगन हो जाती है। दिन देखें न रात कभी,बड़ी लगन से…

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आदिवासी कविता | Adivasi Kavita In Hindi

आप पढ़ रहे हैं ( Adivasi Kavita ) आदिवासी कविता :- आदिवासी कविता शोषित,अपेक्षित, इस धरती के वासी,आदिवासी बनाम मूल निवासी। विकास है बाधक…विस्थापन की मार।कट रहे जंगल,खो रहे ये रोजगार। अस्मिता खतरे मेंफिर भी खुद को रहे संभाल,सांस्कृतिक विरासत के असली हकदार। सुदूर ..अंचल निवासीभूल रहे गीत,न रही बांसुरीन रहा मांदर संगीत। कौन…

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कविता फूल बन महकना | Motivational poem

आप पढ़ रहे हैं कविता फूल बन महकना :- कविता फूल बन महकना काँटों की सेज जीवन,तुझे पार है उतरना...कष्टों की झाड़ियों परतुझे फूल बन महकना। मुश्किल हो रास्ता गर,लगी बड़ी डगर हो..हिम्मत न हारना तुम,मन में तेरी लगन हो। गर डर के तुम न लौटे,मंजिल तुम्हें मिलेगी..तेरे बनाये रास्तों…

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हंसना भूल न जाओ कविता | Hasna Bhool Na Jao Kavita

आप पढ़ रहे हैं कविता हंसना भूल न जाओ :- हंसना भूल न जाओ तल्ख सी है..फिजाएं कुछ, अजब सी बेमियाजी़ है। ज़ायका गुम हुआ कुछ यूं, कि हर शय में खराबी है। नमी आंखों में दिखती है, हृदय भी ग़म से भारी है। उदासी का है यह आलम, जुबां…

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मजदूर पर हिंदी कविता | Mazdoor Par Hindi Kavita

आप पढ़ रहे हैं मजदूर पर हिंदी कविता :- मजदूर पर हिंदी कविता मुट्ठी में बंद उष्णता, सपने, एहसास लिए, खुली आंखों से देखता है कोई ..... क्षितिज के उस पार। बंद आंखों से रचता है इंद्रधनुषी ख्वाबों का संसार। झाड़ता है सपनों पर उग आए कैक्टस और बबूल.... रोपता है…

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हिंदी कविता काल ने तांडव रचा | Kaal Ne Tandav Rachaa

आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता काल ने तांडव रचा :- हिंदी कविता काल ने तांडव रचा काल ने तांडव रचा.. जीना मुश्किल हुआ, चंद सांसें भी लेना दुश्वार हुआ.. सांसे बिकती है ..बोलो खरीदोगे? बिकता है जमीर खरीदोगे? मुनाफाखोर ले रहे मुनाफे का मजा.. उन्हें क्या मतलब!! देश पर…

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हिंदी कविता अनुरोध | Hindi Kavita Anurodh

आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता अनुरोध :- हिंदी कविता अनुरोध तंज.. छेद देते हैं अंतर्मन... नासूर बन जाते हैं यह जहर बुझे शब्द। घुटन... तेजाब बन जला देती है संवेदनाएं । अनबोलापन.... खा जाता है रिश्तों को। अकेलापन... भयभीत करता है। तेज आवाजें सच को छुपाने में अक्षम रहती…

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विश्व जल दिवस पर व्यंग्य | Vishva Jal Diwas Par Vyangya

आप पढ़ रहे हैं विश्व जल दिवस पर व्यंग्य :- विश्व जल दिवस पर व्यंग्य जल संरक्षण स्लोगन बन कर... लटक रहा हर द्वार, नेताजी चिल्ला कर बोले.. जल बचाओ.. मेरे यार। कार्यालय में अधिवेशन है बहस बड़ी जोरदार, छत पर ऊपर टंकी भर गई... फैलता रहा जल.. घंटों हुआ…

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नाराजगी पर कविता | Narazgi Par Kavita

आप पढ़ रहे हैं नाराजगी पर कविता :- नाराजगी पर कविता जब नाराज़ हो जाती हो तुम.. बैचेन हो जाता हूं मै। तारों बिन.. उदास आसमान सा। जैसे सूर्य की लालिमा पर मंडराया हो काला बादल। जैसे काली कजरारी आंखों से बह निकला हो काजल। जैसे भरभरा के फट पड़ा…

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आंसू पर कविता – बूंद | Aansu Par Kavita

आप पढ़ रहे हैं आंसू पर कविता - बूंद आंसू पर कविता बूंद हूं मैं एक खारी, छलकी.. हो चक्षु से भारी, बहकी बन सुख- दुख की मारी, बूंद हूं मैं एक खारी..। मन, हृदय सब गम से भारी... कर गया आंखों को हारी, बोझ सारा मैं समेटे, चल पड़ी..…

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