आप पढ़ रहे हैं ( Adivasi Kavita ) आदिवासी कविता :-
आदिवासी कविता
शोषित,अपेक्षित, इस धरती के वासी,
आदिवासी बनाम मूल निवासी।
विकास है बाधक…
विस्थापन की मार।
कट रहे जंगल,
खो रहे ये रोजगार।
अस्मिता खतरे में
फिर भी खुद को रहे संभाल,
सांस्कृतिक विरासत के असली हकदार।
सुदूर ..अंचल निवासी
भूल रहे गीत,
न रही बांसुरी
न रहा मांदर संगीत।
कौन बोयेगा दोना?
कौन बोयेगा पतरी?
जब सखुआ, महुआ ही न रहेंगे
तो अंखियों से बरसेगी बदली।
रंग बिरंगी कांचली पहने..
ठड्डा नहीं फबेगा,
ऊंट के गले में गोरबंद न सजेगा।
शेर से निर्भीक…
चीते से फुर्तीले,
सलोनी सी रंगत,
दंत दूधिया सजीले।
बेंतरा में ढोते बचपन,
सपने सजीले,
छल कपट से दूर आंखों में
आसमां नीले -नीले।
शहरीकरण से त्रस्त
जैसे पिंजरे में चिरैया,
न छीनो जंगल,
सुविधाएं वही करा दो उन्हें मुहैया।
पढ़िए :- माँ वसुंधरा कविता | Maa Vasundhara Kavita
मांदर = चमड़े से बना ताल वाद्य यंत्र
महुआ = औषधीय वृक्ष
सखुआ = साल का वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है।
कांचली = अविवाहित स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र।
ठड्डा = कड़ा
गोरबंद = ऊंट के गले में बांधा जाता है।
बेंतरा = काम करते समय बच्चों को लटकाने के लिए झोले जैसा।
दोना ,पतरी = दोना पत्तल
रचनाकार का परिचय
नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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