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हिंदी कविता मुकदमा
संस्कृति ,सभ्यता, परंपराएं..
कटघरे में घबरायें,
पेशी हैआज उनकी…
आधुनिकता मुस्कुराए।
निगल जाएगी वह जैसे
आंखें उन्हें दिखाएं ।
घबराहट और डर से तीनों
दम तोड़ती सी जाएं।
मुकदमा पहला खोला,
जोरदारी से है वह बोली,
शोषण की लंबी सूची..
सदियों से डाला डेरा,
अपमान आज तक..
न जाने
कितनों ने है झेला।
संस्कृति आगे आई,
वो कर रही अगुवाई।
बोलीं!
सामंतवादियों ने
नीचा हमें दिखाया
रूढ़ियां खुद तय की
अपराधी हमें बनाया।
वरना हमेशा हमने
था मान ही बढ़ाया।
अपनी सांस्कृतिक विरासत का
लोहा..
विश्व में मनवाया।
लाचार हो प्रताड़ित,
जवाब मांगते हैं
हमने दिया जो तुमको
हिसाब मांगते हैं।
लक्ष्य, मूल्य और साधन
किसने तुम्हें दिए थे?
आस्था, विश्वास भरकर
रास्ते किसने खोल दिए थे?
हो आज आधुनिक तुम
गाल पीटते हो!
अपनी संस्कृति भुला कर
पाश्चात्य सीखते हो!
जड़ें अगर न होतीं..
तो ये पेड़ सूख जाता।
फिर आज कटघरे में
कैसे कोई बुलाता!
पढ़िए :- घर के बंटवारे पर कविता ” बँटवारे का माहौल “
रचनाकार का परिचय
नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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