ब्लैक होल पर कविता | Blackhole Par Kavita
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ब्लैक होल पर कविता
शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण शक्ति के स्वामी तुम,
मंशा क्या है तुम्हारी?
खींच लेते हो सारा उजास क्यों????
घुप्प…………
अंधेरा …….
अंधे गहरे कुएं जैसे…..।
भौतिक विज्ञान के सारे नियम
बौने हो जाते हैं
तुम्हारे आगे।
विशालकाय तारे से तुम..
जो अपने ही भीतर..
सिमट -सिमट कर ब्लैक होल में परिवर्तित हो गया हो ।
जैसे दम घुट रहा हो दुखों से …
और दिल में अंधेरा हो..।
समझती हूं तुम्हारे मन की बात!
टूटे दिलों का दर्द सह नहीं पाते हो तुम..
समा लेना चाहते हो
सारे टूटे हुए तारों के दुख
अपने भीतर।
उन्हे अपने आगोश में भर..
पौछ लेना चाहते हो
सारे आंसू..
और लें जाना चाहते हो
उन्हें भी..
अपने साथ …
मुक्ति की राह पर,
समाधि की ओर…।
रचनाकार का परिचय
नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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