स्वर्गीय माँ पर कविता
स्वर्गीय माँ पर कविता
धरती सूनी माँ सूना आँगन
देखो सूना है आकाश !
बिना तुम्हारे सूना है
जीवन का मधुमास !
तुम्ही बताओ खुद को कैसे
आज यकीन दिलाऊँ !
घर की चारदीवारी बोले
माँ नहीं हमारे पास !!
बिना तुम्हारे सूना है
जीवन का मधुमास !!
माना मेरी साँसें भी
आती जाती रहती है !
गुमसुम चेहरे पे पहले सी
मुस्कान कहाँ ठहरती है !
अगर यकीन ना हो तो
खुद आकर के देख लो !
बिना तुम्हारे बन गया
मैं चलती फिरती लाश !!
बिना तुम्हारे सूना है
जीवन का मधुमास !!
तेरी हँसी को देखकर माँ
हमने हँसना सीखा था!
पकड़ के तेरी उंगलियों को
हमने जीना सीखा था!
लगता है ऐसा अब मुझको
यहीं कहीं तु बैठी है!
अपने आस पास रहा हूँ मैं
अब भी तुझे तलाश!!
बिना तुम्हारे सूना है
जीवन का मधुमास !!
हर जन्म मिले तेरी परछाई
बस इतना मेरा इरादा था!
हाथ कभी ना छोड़ना मेरा
बस इतना तुझसे वादा था !
कलयुग की झुठी दुनिया में
सहम गया मन मेरा माँ!
देख रहा हूँ आधे अधूरे
जीवन का इतिहास !!
बिना तुम्हारे सूना है
जीवन का मधुमास !!
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