गिलहरी पर कविता – एक गिलहरी | Gilahri Par Kavita

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गिलहरी पर कविता

गिलहरी पर कविता

एक गिलहरी मेरे पोस्ट के चारों ओर भटकती है,
रुक-रुक कर वो बड़े प्यार से मेरी ओर घूरती है।
मुझे लगा कि वह बेचारी मॉर्निंग वाक पर आई है,
लेकिन वह भूख मिटाने के खातिर दाना लेने आई है।।

उम्मीद भरी निगाहों से मुझको नजरों से ताड़ा ,
चारों ओर रही भटकती मिला उसे ना एक दाना।
तब मैंने नाश्ते की रोटी का टुकडा उसको डाला ,
बड़े प्यार से मुझको देख उसने थैंक्यू कह डाला।।

उठा नेवाला रोटी का वह ,आगे के पैरो पर रखकर,
चमकदार, उत्सुक आंखों से चारों ओर देख_देख कर।
अपने नन्हें दांतो से वह खाने लगी कुतर कुतर कर ,
पेट भरा मेरे दोस्त का लगी नाचने उछल उछल कर।।

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रचनाकार का परिचय

रवींद्र कुमार जी

यह कविता हमें भेजी है रवींद्र कुमार जी (सशस्त्र सीमा बाल ) ने लखीमपुर, उत्तर प्रदेश से।

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धन्यवाद।

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1 Response

  1. Avatar Amrin khan says:

    Bhut khoob …..
    Ek ehsas chhupa hai apki kavita me .

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