हिंदी कविता यूँ राहों में

हिंदी कविता यूँ राहों में

तेरी जुल्फों की घनेरी छाँवों में
रात भर रहा तेरी बाहों में,
निकल के चाँद छिप गया
चेहरा नजर आया यूँ राहों में।

फितरत तेरी कुछ इस तरह
की अदाओं से राज करती है,
तेरे जगने से दिन निकलता है
झुके पलकें तो रात ढ़लती है,
तेरी बाँहों में गुजा़रु ताउम्र
ख़्वाब यही बसा है आहों में।

निकल के चाँद छिप गया
चेहरा नजर आया यूँ राहों में।

झुका के सर रख काबू में
दिल-ए-नादा़न जब लाता हूँ,
लगती तू मौसम-ऐ-गुलशन
तेरी यादों में दिन बिताता हूँ,
मचलती लहरों का रुख देख
तूफां उठा दूं सुनी निगाहों में।

निकल के चाँद छिप गया
चेहरा नजर आया यूँ राहों में।

झील सी नीली आँखों में डूबो
झूठा कोई वादा तू करा ले,
तेरे अश्कों के बहते दरिया में
उम्र भर चाहे तो तू बहा ले,
छटपटा रहा हूँ बुझाने दे प्यास
मुद्दतों रिश्ता रखने दे पनाहों में।

निकल के चाँद छिप गया
चेहरा नजर आया यूँ राहों में

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