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कविता फूल बन महकना

काँटों की सेज जीवन,
तुझे पार है उतरना…
कष्टों की झाड़ियों पर
तुझे फूल बन महकना।
मुश्किल हो रास्ता गर,
लगी बड़ी डगर हो..
हिम्मत न हारना तुम,
मन में तेरी लगन हो।
गर डर के तुम न लौटे,
मंजिल तुम्हें मिलेगी..
तेरे बनाये रास्तों पर,
दुनिया ये चल पड़ेगी।
पैरों के छालों से तुम,
थक कर न बैठ जाना..
हृदय के उजालों से,
अँधेरों को सजाना।
बहता हो गर पसीना,
छाँव कहीं भी हो न..
हो धूप चाहें कितनी,
एक पल न तू घबराना।
राहें बनाते जाना,
आगे ही बढ़ते जाना…
खींचेगा पीछे कब तक!
बैरी तुझे जमाना।
कछुआ कैसे जीता था!
सब ने सुनी कहानी..
फिर कैसे तुमने साथी!
यूँ हार मन में ठानी।
पढ़िए :- चरित्र निर्माण पर कविता | तुम राहों के कोमल फूल बनो
रचनाकार का परिचय

नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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