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हिंदी कविता धूमकेतु
आज.. तुम्हारे ही बारे में
कुछ कहना है मुझे।
जाज्वल्यमान, तेजस्वी पुंज से तुम…
जब भी आते हो ..
ब्रह्मांड की सैर करने,
सूर्य की परिक्रमा लगा…
अपने भीतर व्याप्त निराशाओं
का दमन कर
आशा का संचार करते हो।
तुम्हारा मुख..
सूर्य के ताप से तपकर,
सितारे की तरह
दमकने लगता है …..।
बेशक !
आभासी ही सही ..
पर श्रुद्र ग्रह की तरह
बेनाम सी जिंदगी जी …
ब्लैक होल में समाना…
नहीं भाता है तुम्हें।
पत्थर , बर्फ और गैस से बने तुम ..
अपने दुखों को तूल देकर
पूंछ बना ली है तुमने।
जाने दो उन्हें..
दुखों को जमा -जमा कर
पत्थर हो गए हो….
आंसुओं ने पत्थर पर गिर- गिर कर बर्फ जमा ली है।
बाकी जो आंख में रह गए….
उन आंसुओं की नमी ने
गैस बना पूंछ का निर्माण किया ।
सूर्य से …..
मिलते रहा करो।
वापसी में यह दुखों की पूंछ …
धीरे-धीरे गायब हो जायेगी
और … तुम..
उत्साह से भर उठोगे।
ब्रह्मांड को इंतजार है …फिर तुम्हारे चमकने का,
हजारों तारों की आंखें …
प्रतिक्षारत हैं।
शुद्र ग्रह भी तुम से तपकर… चमकने की कला सीखना चाहते हैं।
सूर्य फिर तुम्हें तपा कर….
चमकता सितारा बनाने को आतुर है।
कहां हो तुम…
धूमकेतु/पुच्छल तारे?
रचनाकार का परिचय
नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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