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नाराजगी पर कविता
जब नाराज़ हो जाती हो
तुम..
बैचेन हो जाता हूं मै।
तारों बिन..
उदास आसमान सा।
जैसे सूर्य की लालिमा पर
मंडराया हो काला बादल।
जैसे काली कजरारी आंखों से
बह निकला हो काजल।
जैसे भरभरा के
फट पड़ा हो बादल..।
वह प्यारी सुबकियां जानकर
मुझे सुनाते वक्त,
जैसे भर गया हो समुंद्र
तुम्हारी आंखों में..
तैरने लगे हों सीप
निकल पड़े हो,
बेशकीमती सफेद मोती
और फिर बह निकले हो
तुम्हारी आंखों से।
चुपचाप कनखियों से मुझे
निगाह बचा कर देखना फिर..
नाराजगी से पीठ फेर कर
बालों को इस अंदाज़ में झटकना
की मेरे चेहरे से टकरा जाए।
फिर मेरा बनावटी क्रोध दिखाना..
जैसे तुम्हारे जलते हृदय को
मलहम मिल गया हो।
चेहरा पढ़ने की कला में
माहिर हो तुम।
मेरी हंसी देखी तो
त्योरियां चढ़ा ली
और देखा क्रोध
तो खुद ही सिमट कर
बाहों में समा गई।
मुझे पसंद है तुम्हारा
रूठी हुई हंसी हंसना..
और उससे भी अधिक पसंद है
तुम्हारा शिकायती आंखों से
मुझे देखना और मुझ में समा जाना।
रचनाकार का परिचय
नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा
निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।
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