कविता नीम की छांव | Neem Ki Chhanv Poem In Hindi

आप पढ़ रहे हैं कविता नीम की छांव :-

कविता नीम की छांव

कविता नीम की छांव

गिल्ली डंडा बाघा बीता
छुक छुक इंजन वाला खेल,
दिन भर आना जाना रहता
सबसे होता रहता मेल।

सुख-दु:ख की सब बात समझते,
अपनापन के फूल थे झड़ते ,
तैरते प्यार की नाव में
पुराने नीम की छांव में।

बिखर गये सम्बन्ध सब
पतझड़ सा बहार में,
ऐसा छाया काला जादू
जहर घुल गया प्यार में।

दिया दिवाली रंग रंगोली,
भूल गये रंगों की होली,
मिलता कोई न राह में
पुराने नीम की छांव में।

दादा,दादी के किस्से व
डांटा -डांटी,प्यार दुलार,
कौन पूछता अब दादी को
दादा गये संसार सिधार।

आल्हा कजरी सोहर गीत,
न ढोल तमाशा का संगीत,
सन्नाटा पसरा गॉव में
पुराने नीम की छांव में।

पढ़िए :- बचपन की यादें पर कविता | वो दिन भी क्या खूब सुहाने थे


रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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1 Response

  1. Avatar Aman says:

    Very nice sir ji

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