आप पढ़ रहे हैं कविता नीम की छांव :-
कविता नीम की छांव
गिल्ली डंडा बाघा बीता
छुक छुक इंजन वाला खेल,
दिन भर आना जाना रहता
सबसे होता रहता मेल।
सुख-दु:ख की सब बात समझते,
अपनापन के फूल थे झड़ते ,
तैरते प्यार की नाव में
पुराने नीम की छांव में।
बिखर गये सम्बन्ध सब
पतझड़ सा बहार में,
ऐसा छाया काला जादू
जहर घुल गया प्यार में।
दिया दिवाली रंग रंगोली,
भूल गये रंगों की होली,
मिलता कोई न राह में
पुराने नीम की छांव में।
दादा,दादी के किस्से व
डांटा -डांटी,प्यार दुलार,
कौन पूछता अब दादी को
दादा गये संसार सिधार।
आल्हा कजरी सोहर गीत,
न ढोल तमाशा का संगीत,
सन्नाटा पसरा गॉव में
पुराने नीम की छांव में।
पढ़िए :- बचपन की यादें पर कविता | वो दिन भी क्या खूब सुहाने थे
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
“ कविता नीम की छांव ” ( Neem Ki Chhanv Poem In Hindi ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Very nice sir ji