कृष्ण बाल लीला कविता

कृष्ण बाल लीला कविता

कृष्ण बाल लीला कविता

अब आन बसौ मोहन मन में,
तेरी सूरत मन को भावत है। 
बचपन में तू जीवन की सबै,
खूब लीला करत दिखावत है।

ठुमकत चलत बजै पैजनिया,
तन मन में प्रीति जगावत है। 
किलकारी मार हसत आगन,
जग भर में सबै हसावत है।

बचपन का तेरा रूप सलोना,
चंचल चित्त को ठहरावत है।
नैन कमलवत तिरछी भौंहे,
मेरे चित् को चोर बनावत है।

मोर मुकुट सिर सोहत जैसे,
इंद्रधनुष रंग बनावत है।
श्यामल वर्ण मनोहर तन,
घनश्याम कै याद दिलावत है।

अधरों के बीच बजाय मुरली,
बिन बादल मोर नचावत है। 
लीला भी करते गजब किसन,
मुख में ही जग दिखलावत है

संयोग वियोग कै खेल रचाके,
सुख-दुख कैनीति सिखावत है
हठ में भी तेरे प्रीति सधै सब,
नभ चांद को भूमि बुलावत है।

ग्वालन के संग गाय चरइया,
मिल माखन खूब चुरावत है।  
गोपियन के संग रास रसैया,
मधुरस  प्रेम  बरसावत  है।

बिप्र सुदामा को मीत बनाकर,
सुख दुःख सरस निभावत है।  
दीनन कै तू दान देवइया,
करुणानिधि नाथ  कहावत है।

तुम लेकर जन्म काल कोठरी में,
देवकी वासुदेव सुहावत है।  
भादों माह गहन अधियरिया,
यमुना से चरण छुआवत है।|

दो दो मइया पाय कन्हैया,
दो मां का महत्व समझावत है।
निरखि निरखि तेरा लीला प्रभु,
सबै देव फूल बरसावत है।

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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