Badal Par Kavita आप पढ़ रहे हैं बादल पर कविता :-

Badal Par Kavita
बादल पर कविता

Badal Par Kavita

खींच खींच ले मन को जाते
मीत मनोहर वे बन जाते ,
उमड़- घुमड़ कर आगे पीछे
उड़ते बादल कहां को जाते?

कुछ नाचते खुशी मनाते
कुछ के आंसू झर झर जाते ,
सुख दु:ख का यह संगम कैसा ?
नई नवेली दुल्हन जैसा ,
आंखों से जो जल बरसाते
उड़ते बादल कहां को जाते?

उनके सुख-दु:ख से क्या हम को?
उनके दु:ख से ही सुख हमको ,
अपनापन तो दूर खड़ी है
आशा केवल यही लगी है,
जल जीवन हमको दे जाते
उड़ते बादल कहां को जाते?

खुद सुखी संसार सुखी है
गैर के दु:ख से कौन दुखी है ?
मानव का स्वभाव निराला
बादल में भी गोरा काला,
लौट कर वापस क्यों नहीं ?
उड़ते बादल कहां को जाते ?

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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