मुस्कान पर कविता | Poem On Smile In Hindi | Muskan Par Kavita

Poem On Smile In Hindi आप पढ़ रहे हैं मुस्कान पर कविता :-

Poem On Smile In Hindi
मुस्कान पर कविता

 मुस्कान पर कविता

मानव मुस्कान भरो मन में

जीवन नीरस न बनने दो,
किसलय कुसुम सा खिलने दो,
भार बनो न धरती का,
जज्बा रखो कुछ करने का,
भौंरे गुनगुनाने दो कानन में
मानव मुस्कान भरो मन में।

उगता सूरज हो या ढलता,
वह लिये लालिमा खुश रहता
प्रातःकाल मतवाली हो,
या अस्तकाल की लाली हो,
अरूण उर्मि भर लो तन में
मानव मुस्कान भरो मन में।

बिनु पैर पर्वत चढ़ सकता है,
अंधा गीता पढ़ सकता है
देखो गति जल के सफरी का,
पावन पुनीत ध्वनि बसुरी का,
चित, चरित्र, चेतना, जीवन में
मानव मुस्कान भरो मन में।

धन हो न हो, मन लक्षित हो,
ह्रदय रति भाव से अखंडित हो,
शुद्ध जीवन, बुद्ध- समर कर दो,
जग में तुम नाम अमर कर दो,
न व्यर्थ समय हो जीवन में।
मानव मुस्कान भरो मन में।

पथ पकड़ चलो मत मुड़ो कहीं,
बांधा से विधु भी बधा नहीं,
पर्वत बांधा बन खड़ा अगर,
कस दो वह टूटे चरर मंरर,
नर हो न निराश रहो मन में
मानव मुस्कान भरो मन में।

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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