लालसा पर कविता
लालसा पर कविता
लालसा न चाह की है,
जीवन में कुछ पाने को
लालसा न बड़ा बनू,
न बहुत कुछ कर जाने को
छीन कर खुशियां किसी की,
रोटियां दो वक्त की
मैं चलूं तारों को लाने,
छोड़ इन्हें मर जाने को
धिक्कार है जीवन को ऐसे,
धिक्कारता हूं लोग को
जो अपनी ही खुशियों के खातिर,
तैयार हैं मर जाने को
चाहता हूं ना उड़ू बन,
खुशबू किसी भी फूल का
लालसा कैसे करूं मैं,
पैरों तले मिट जानें को
क्या करुंगा हो खड़ा,
चट्टान सा बाधा बना
अच्छा है मैं मोम सा
तैयार हूं गल जाने को
लालसा न चाहता हूं,
सागर सा खारा बनूं
जल में ही मर जाए प्यासा,
पी करके उस पानी को
बस चाहता चाहत बनूं मैं,
भूखे प्यासे इंसान का
लालसा मेरी यही बस,
नदियों सा बह जाने को
न चाहता बन जाऊं नेता,
करके वादा मुंह मोड़ लूं
देखते थक जाते नभ को,
एक वतन ही पाने को
देखा है बच्चे को लादे
करते कमातीं नारियां
धन्य है भारत की देवी,
दिल करता गुण गाने को
लालसा मेरा यही कि,
देखूं गगन की ओर मैं
सोने की चिड़िया सी तिरंगा,
चाहता उड़ जाने को
सूर्य सम चमकूं गगन में,
ऊर्जा का संचार भर
मैं मिटाऊं तम गमों का,
जीवन नया दे जाने को
चाहता हूं बीज बोना,
नेकी का इंसानों में
लालसा इतना ही काफी
पूरा करूं अरमानों को
छोड़ दूं मैं अपनी खुशियां
लालसा कुछ पाने को
पढ़िए :- नींव और मकान पर कविता – नींव बनूँ या मकान
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
“ लालसा पर कविता ” ( Lalsa Par Kavita ) आपको कैसी लगी ? “ लालसा पर कविता ” ( Lalsa Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Leave a Reply