हिंदी पर कविता

हिंदी पर कविता

हिंदी पर कविता

स्वर ध्वनि शब्दों की हिंदी भाषा
अमृत धारा सी बह रही है
रगो में शीतल सरिता सी चलकर
सांसों के सागर में बह रही है।  

अनमोल कितना मधुरमयी है 
दुनिया भी तुमको पहचानती है
तेरी प्रसंशा का राग की धुन
सुबह सवेरे खूब बज रही है। 

अरमान अभिमान सम्मान वैभव
गौरव गरिमा है देश की तू
सुन्दर मनोरम मीठी सरल है 
दिल की हर धड़कन कह रही है। 

तू विश्वव्यापी है राष्ट्र भाषा 
घर घर हो जाती मातृभाषा
तेरी शुद्धता को क्या बताऊं
किलकारियां भी बता रही है 

तेरी सुगमता तेरी सहजता
सभी को बांधी है एकता में
रसों में रम कर छंदों से बध कर
साहित्य सज धज कर कह रही है। 

व्यवहार हिंदी अधिकार हिंदी
आधार जीवन की बन गई है
विरा तुलसी रसखान बनकर
ज्ञान की गंगा सी बह रही है। 

विशाल भारत में तेरी खुशबू
महक रही है हर कोने कोने
हवा की झोंके भी गुनगुनाकर 
तेरी गरिमा को गा रही है। 

अखिल विश्व के क्षितिज धरा पर 
जन जन की भाषा तू बन चली है
उत्तर से दक्षिण पूरव से पश्चिम
सूरज सा चम चम चमक रही है। 

हिंदी को आओ पढ़ें पढ़ाएं
सहज सुबोध सरल बनाएं
बन श्रंगार देश की हिंदी
सम्मान हमारा बढ़ा रही है। 

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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