रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित ” कविता मन की बात ”
कविता मन की बात
जहां चाहिए ढेरों लालसा
ढेरों याचना ढेरों उल्लास
पर बैठे लोग दे रहे थे
एक दूसरे को ढाढस दिलासा मात।
सब दु:खी थे
ओंठो पर बिना लिए मुस्कान
बैठकर एक साथ
कर रहे थे मन की बात।
खूब कमाओ बना लो
जिंदगी भर मेरे आपके लिए
अंत में लौट कर आना है
सभी को इसी घाट।
क्या लगता है ?
शैय्या पर पड़े असहाय
जी पाओगे रह शांत ?
यह सोच कर !
खूब बनाया बड़े मकान
धनो का भंडार ,
किंतु आयेंगे सपनों में
व्याकुलता दु:ख निराशा उस रात।
खूब चला गीता रामायण
भौतिक अध्यात्म
जीवन के हालात की बात।
शाम का सूरज डूबता दिखने लगा था
चल पड़े लोग वापस अपने घर की ओर
रात बीती सूरज निकला
नई सुबह के साथ
लोग भूल चुके थे
शमशान की वह जज्बात।
मैं ठगा सा बोझिल उदास
देखता रहा बदलाव
फिर वही तू- तू, मैं- मैं
तेरा- मेरा, अपना- पराया
जीवन का अज्ञान उछाह
धोखेबाजी घात-अघात।
पता नहीं क्यों?
बन जाते अंजान
यह जान कर, क्या?
मिल पायेगा ज़मीन
हमें दो गज माप का
या बनेंगा निवाला किसी
पशु पक्षी के हाथ का।
यह विशालकाय चंचल गात।
पढ़िए :- कविता “मन की खुशियां”
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
“ कविता मन की बात ” ( Kavita Man Ki Baat ) आपको कैसी लगी ? “ कविता मन की बात ” के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Leave a Reply