Guru Mahima Par Kavita आप पढ़ रहे हैं गुरु महिमा पर कविता :-

Guru Mahima Par Kavita
गुरु महिमा पर कविता

Guru Mahima Par Kavita

आंख मूंद झांकू अन्तर्मन,
पाऊं पावन पग अवलंबन,
परम पूज्य ईष्ट गुरु जन
कर जोड़ करू अभिनंदन।

चित चरित्र चेतना सृजनकर्ता
भाषा भाव भावना प्रवर्ता
मात-पिता तो जीवन दाता,
गुरू देव आप भाग्य विधाता।

जाति धर्म सब एक न माना,
गैरों को अपनो सा जाना,
गुरु  गरिमा सब ग्रंथ बखाना,
ईश्वर से भी बढ़कर माना।

अंधकार मन किया ज्योति मय,
कर सत्कर्म बने प्रेम मय
बन माली गुरु हमें सम्हाला,
कुम्भकार बन रूप संवारा।

करुणा दया का पाठ पढ़ाया,
निडर निर्भय सुख शांति सिखाया
वक्ता,दृष्टा,सृष्टा,आविष्कारी,
सहज समाज में शिष्टाचारी।

गुरू शिष्य का ऐसा बन्धन,
जनम जनम तक टूट सके न,
रवि रश्मि सा दीप ज्योति सा,
गुरु शिष्य संग छूट सके न।

पढ़िए :- गुरु पर कविता | गुरु है तो शिष्य की पहचान है


रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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