प्रस्तुत है रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित ” हिंदी कविता अंतरिक्ष ” :-
हिंदी कविता अंतरिक्ष
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
चांद की शीतल प्रभा
चित् में पिरोए आज हम
शांत कर चित् चेतना
जगमग बनाए रात हम,
बन बैरी तम के गमों से
बैर कर लें,
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
सूर्य का तेजस किरण
बन तेज भर ले प्राण हम
ओस आंसू सोख कर
दुःख का मिटाए शान हम,
भेद भाव का तोड़ बंधन
मेल कर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
टूटते तारे क्षणिक
मानो चमकते मोतियां
नील अम्बर में किरण
करती चमक अठखेलियां,
मन में मधुर चंचल चमक का
भाव भर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
घूम घूम घन घनेरे
रंगते रंगीन रंगोलियां
घड़ घड़र घड़घराती
चम चमचमाती बिजलियां
गोंद में खुशियां समेटे
प्रेम कर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
ग्रहों की दुनिया गजब
हैं धूमते आदित्य संग
बध बंधन में प्रेम के
हैं झूमते नित्य अंग अंग
भर रवि का प्रकाश खुद में
प्रीति कर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
न शुरू न अंत तेरा
न अंत है आर पार का
विस्तार भी अनंत है
अनंत रूप आकार का
आओ सुविस्तार अपनी
कीर्ति कर लें,
आओ मन के अंतरिक्ष में
सैर कर लें।
पढ़िए :- बाल कविता ” नील गगन में “
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
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