आप पढ़ने जा रहे हैं विश्व शांति दिवस पर कविता :-
विश्व शांति दिवस पर कविता
उठ रहे नभ में शिखाएं
जल रही मंडल दिशाएं
खुद लगाकर आग जलता दुष्कर्म छोड़ेगा नहीं,
तू हार मानेगा नहीं।
देख लो इतिहास अपना
हो गया सब खाक सपना
हाथ मलते चल पड़ोगे कुछ साथ जायेगा नहीं,
तू हार मानेगा नहीं।
युद्ध का अंजाम मुस्किल
मर रहा इंसान तिल तिल
खुद अपनों के कातिल बन अन्याय छोड़ेगा नहीं,
तू हार मानेगा नहीं।
हो विधवा अनाथ सारे
भर रहे हैं आह गहरे
सुन ढेरों कराह तड़प पीछे पांव डालेगा नहीं
तु हार मानेगा नहीं।
युद्ध को तू धर्म कहता
मानवता का नाशकर्ता
तू हाथ में तलवार लेकर अशान्ति टालेगा नहीं,
तू हार मानेगा नहीं।
जापान हो या फ्रांस हो
या रूस हिन्दुस्तान हो
है कौन बलवान ऐसा परिणाम है भोगा नहीं,
तु हार मानेगा नहीं।
परमाणु हथियार लेकर
युद्ध का ललकार देकर
मिट जाए संसार सारा हथियार डालेगा नहीं,
तु हार मानेगा नहीं।
धन्य है जीवन हमारा
दीप सा कर दो उजाला
विश्वशान्ति का सौगात जन जन पहुंचाएगा नहीं?
तु हार मानेगा नहीं।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
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