दया पर कविता

दया पर कविता

दया पर कविता

सूख गयी है ताल तलैया
ठप  बैठे  हैं नदी की नैया
चिंगारी  सी  है  दोपहरिया
एक बर्तन पानी धरा करो!
हम पक्षी पर दया करो।  

हम पक्षी अब तड़प रहे हैं
नदियां  नाले चटक रहे हैं
पानी  का आसार कहीं न
हम बेजुबान का भला करो!
हम पक्षी पर दया करो।  

भटक-भटक चलते राहों में
तड़प  रहें  जीवन आहों में
प्यासे प्यासे निकल रहा दम
हो तुम्हीं दयालु दया करो!
हम पक्षी का भला करो।  

भोजन  राहों  में  चुग  लेते
कम या ज्यादा जो मिल पाते
मांग  रहे   न  और  कोई कुछ
बस  थोड़ा  पानी  दिया करो! 
हो तुम्हीं दयालु दया करो। 

जल पीने को कहां से लाऊं
अपना दुखड़ा किसे सुनाऊं
धरती  पर  संज्ञान  तुम्हीं हो
बस इतना कष्ट किया करो!
हो तुम्हीं दयालु दया करो।

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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