यह कविताएं हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
मकसद पर कविता मकसद पर कविता ज्ञान मंजिल तक पहुंचाता है पर मंजिल का पता हो ध्यान मकसद तक ले जाता है अगर ध्यान मकसद पर डटा हो चूर चूर हो जाते हैं सारे सपने जब मार्ग ही लापता हो इच्छाएं सपने उद्देश्य पूरे होते हैं जब खुद में समर्पण की दक्षता हो कहते हैं कर्म…
हिंदी कविता नायक हिंदी कविता नायक नायक का किरदारजीवन के रंग मंच परशुरू होता हैशुरू से अंत तक, सुख दुःख के संगम मेंनहाकर,धोता है मन के मैल कोहंसाकर,कृष्ण और कंस काराम और रावण काद्रौपदी और दुशासन काराशियां तो एक हैंपर कर्म सोंच में भेद है कर्म ही बनाता हैनायकया फिर…
रक्षाबंधन पर कविता रक्षाबंधन पर कविता मैं बहना ,भाई ना मेरे राखी बिकते प्यारे प्यारे राखी आते,मन भर जातेकिसे बांध मैं मन बहलाऊं,कैसे मैं त्योहार मनाऊं। प्रीत की बंधन के धागा कोबांध के टालूं हर बाधा कोकिस भाई को बांध कलाईरिश्तों में विश्वास जगाऊं,कैसे मैं त्योहार मनाऊं। मेरे भी गर भाई होतामैं राखी वह कंगन लाताथाली भर मैं प्यार सजाकर किस भाई पर प्यार लुटाऊं,कैसे मैं त्योहार मनाऊं। छोटा होता प्यार लुटातीआशीर्वाद बड़ा से पातीमीठे मधुर मिठास बढ़ा करकिसको विजया तिलक लगाऊं?कैसे मैं त्योहार मनाऊं। मात- पिता भाई में देखूं बांध गांठ रिस्तें को रख्खूंबिन भाई के जीवन कैसा?खुद को आज पराई पाऊं,कैसे मैं त्योहार मनाऊं। भाई का होना ना होना क्या कर सकती कोई बहनाखुद में खुद को भाई देखूं खुद को खूब मजबूत बनाऊं,अब ऐसे त्योहार मनाऊं। खुद भाई खुद बहना बनकरजीवन जी लूं आगे बढ़करमात पिता अपने में पाकरबेटी बेटा मैं बन जाऊं,अब ऐसे त्योहार मनाऊं। करुं अपेक्षा रक्षा का क्योंअबला से सबला हो ना क्योंइस अन्तर को मैं झुठलाकर खुद की रक्षा खूब कर पाऊं। अब ऐसे त्योहार मनाऊं। पढ़िए :- रक्षाबंधन को समर्पित शायरी संग्रह रचनाकार का परिचय यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से। “ रक्षाबंधन पर कविता ” ( Rakshabandhan Par Kavita ) आपको कैसी लगी ? “…
पर्यावरण संरक्षण हिंदी कविता पर्यावरण संरक्षण हिंदी कविता एक बार की बात लगाया उस पौधे पर हाथलजाई दूल्हन मानो रातपूछा कैसा शरम हयातमैंने क्या कर दी तेरे साथ? शहमी ठहरी थी कुछ देरफिर वह हल्की भरी हिलोरतन के खड़ी हुई भर जोरतब वह बोली मीठी बोल,मेरा छुईमुई पहचान लाजवंती क्यों…
आजादी पर हिंदी कविता आजादी पर हिंदी कविता यहां से वहां तकजहां न तहां तकमुट्ठी को जकड़ेतिरंगे को पकड़े थें निकले दिवानेआजादी को पाने,आजादी में आगेथे आजाद भागे इंकलाब जय कीभारत विजय कीलगते थे नारेगलियों में सारे, सिंहनाद जन जन गरजते थे गर्जनलिए जोश जज्बागली कूच कस्बा आजादी को लानेचले थे दिवाने ,कहानी…
पढ़िए रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित मुलाकात पर कविता :- मुलाकात पर कविता चलता गयाचलता रहा मिलता रहाहर लोग से,जीवन सफ़रकटता रहामुड़ता गयाहर मोड़ पे, जितने मिलेजैसे मिलेअपने मिलेंया गैर हो,कहता गयादेता गयाशुभकामनासब खैर हो , आता गया फिर मोड़ थाडगमग डगरका अंत वह,डूबता दिन था अंधेराआंधी चली अब मंद बह, दिखता नहीथा सामनेउठता…
आप पढ़ रहे हैं रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित आंगन पर कविता " बांटों ना आंगन बन्धु " :- आंगन पर कविता बांटों ना आंगन बन्धु! आज तोड़ो ना रिस्तें मधुर आज। तुलसी सी मां-ममता महकेघर का कोना कोना गमकेजीवन की ज्योति सदा चमकेंबजता है जिसमें प्रेम साज। बांटों ना आंगन…
Poem On Pen In Hindi - आप पढ़ रहे हैं कलम पर कविता " कलम हूं कलम मैं " :- Poem On Pen In Hindi कलम पर कविताकलम हूं कलम मैंअनोखी कलम हूं। कोरा था कागजथी मंजिल सफर परचली चाल टेढ़ीपकड़ कर डगर को कभी हाथ जज केमुकद्दर लिखी हूंकभी…
आधुनिक शिक्षा पर कविता | Adhunik Shiksha Par Kavita आधुनिक शिक्षा पर कविता शिक्षित से अच्छा अनपढ़ थाफिर भी शिक्षित से बढ़कर थाअपने अपनों का अपनापनसुशीतल मधुर सुधाकर था अब अनपढ़ से मैं शिक्षित हूंसंस्कारों से परिशिक्षित हूंफिर भी न जाने क्यूं खुद सेखुद ही खूब मैं लज्जित हूं …
आप पढ़ने जा रहे हैं विश्व शांति दिवस पर कविता :- विश्व शांति दिवस पर कविता उठ रहे नभ में शिखाएंजल रही मंडल दिशाएंखुद लगाकर आग जलता दुष्कर्म छोड़ेगा नहीं,तू हार मानेगा नहीं। देख लो इतिहास अपनाहो गया सब खाक सपनाहाथ मलते चल पड़ोगे कुछ साथ जायेगा नहीं,तू हार मानेगा…
पढ़िए रामबृक्ष कुमार जी की " बदलते रिश्ते कविता " बदलते रिश्ते कविता अब तो रिश्तों पर भरोसा न रहा रिश्तों का रंगअपनों के संग होते हैं गाढ़ेसदा के लिएन होते दुरंग न होंगेकभी भीन बदलेंगे ये बनते रिश्ते, ये पवित्रअनमोलसुवाचमजबूत भरोसे पर टिका रिश्ता न रहा,अब तो रिस्तों पर भरोसा…
आप पढ़ रहे हैं रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित विवाह पर हास्य कविता " बिन बुलाए मेहमान " विवाह पर हास्य कविता बड़े ठाठ से दावत खाने, पहुंचे गंगू भाईतन पर सूट बूट पांव में,टांग गले में टाई कभी घराती कभी बराती,ठन बन दौड़ मचातेठाट बाट से कौन पूछता,क्यों किसको…