Prabhat Kavita | हिन्दी कविता प्रभात | ब्रह्म मुहूर्त की बेला में

Prabhat Kavita - आप पढ़ रहे हैं हिन्दी कविता प्रभात " ब्रह्म मुहूर्त की बेला में " Prabhat Kavita ब्रह्म मुहूर्त की बेला में,कविता रची प्रभात।शीतलहर,तीखी ठंड,कर रही सीधा आघात। शांत पड़ा है शहर,दुबके पड़े है सब मंद।कोहरा छा रहा है,पड़ रही है तेज धूंध। मंदिर का सुन टंकारा,सबने ली…

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विश्व हिंदी दिवस पर कविता | Vishwa Hindi Diwas Par Kavita

विश्व हिंदी दिवस पर कविता - आप पढ़ रहे हैं ( Vishwa Hindi Diwas Par Kavita ) हिन्दी मेरी भाषा :- विश्व हिंदी दिवस पर कविता हिन्द भूमि से जुड़ी;भाषा हिन्दी कहलाय,शब्दों में सुगंध धरा की;हिन्दी खूब लुभाय। हिन्दू राष्ट्र का स्वाभिमान;हिन्दी में समाय,जनगण, वन्दे मातरम् का गान;शब्दामृत बरसाय। उत्सव,…

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कन्या भ्रूण हत्या पर कविता | Kanya Bhrun Hatya Par Kavita

Kanya Bhrun Hatya Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं कन्या भ्रूण हत्या पर कविता :- कन्या भ्रूण हत्या पर कविताKanya Bhrun Hatya Par Kavita कमाल है सबजिसे देवी मानते हैं,लक्ष्मी,सरस्वती, दुर्गाकी तरह पूजते हैं। वंश को हमारेआगे बढ़ाए जो,हमें जीवन जीनासिखाए जो। कभी माँ की तरहदुलारती है,कभी बहन की…

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Guru Gobind Singh Ji Kavita | गुरु गोविंद सिंह जी पर कविता

Guru Gobind Singh Ji Kavita - आप पढ़ रहे हैं गुरु गोविंद सिंह जी पर कविता :- Guru Gobind Singh Ji Kavitaगुरु गोविंद सिंह जी पर कविता पुण्यश्लोक गुरु गोविंद सिंह की गाथा गाते हैं।जन्मदिवस को प्रकाश पर्व कह हम मनाते हैं। गुरु तेग बहादुर घर जन्मा देदीप्यमान सिताराईश्वर अंश…

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Tiranga Jhanda Poem In Hindi | तिरंगा पर कविता

Tiranga Jhanda Poem In Hindi - आप पढ़ रहे हैं तिरंगा पर कविता :- Tiranga Jhanda Poem In Hindiतिरंगा पर कविता पिता कौन क्यों है लेटा ?ओढ़े कफ़न तिरंगा,कंधों पर ले चार खड़े हैंआंख से बहती गंगा, बेटा बुला रहा है उनकोकरुणा से रो रोकर,गिरी धरा पर मां शिथिलसिंदूर अश्रु…

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Hindi Poem On Hope | उम्मीद पर कविता

Hindi Poem On Hope - आप पढ़ रहे हैं उम्मीद पर कविता :- Hindi Poem On Hopeउम्मीद पर कविता जीवन में मिले शांति,रखो ईश्वर से उम्मीद‌।सबके घर मने,दीपावली और ईद। ना उम्मीद होना तो,जीवन का होगा अंत।हम तो गृहस्थी है,उम्मेदी होते फकीर संत। हमेशा रखनी चाहिए,विजय की उम्मीद।करो ऐसा परिश्रम,उड़…

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6 हिन्दी कविताएं | 6 Hindi Kavitayen By Vishal Shukla

आप पढ़ रहे हैं 6 हिन्दी कविताएं :- 6 हिन्दी कविताएं जिंदगी खूबसूरत है। देख सको तो देखोतितली के रंग-बिरंगे परो कोबादलों से घिरे नीले आसमां कोफूलों से भरी क्यारियों को। महसूस कर सको तो करोमुस्कान से उपजे एहसास कोअपनों के संग गुजारे लम्हात कोस्पर्श के जज़्बात कोकि ज़िंदगी खूबसूरत…

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Hosla Par Kavita | हौसले पर कविता

Hosla Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं हौसले पर कविता :- Hosla Par Kavitaहौसले पर कविता संघर्षों से निजात हेतु,लेने पड़ते है कठिन फैसले। इसलिए हमेशा बढ़ाना है,दूसरों की हिम्मत व हौसले। हौसला व हिम्मत,है ऐसा हथियार।नकारा भी हो जाते है,काम करने के लिए तैयार। हौसला अफजाई से,मिलता है बड़ा…

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Kalam Par Kavita | कलम पर कविता – उठे कलम जब

Kalam Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं कलम पर कविता " उठे कलम जब " :- Kalam Par Kavitaकलम पर कविता उठे कलम जब,लेखक साहित्यकार की। सृजन होती है रचनाएं,भिन्न भिन्न प्रकार की। देती है जीवन मे नव संदेश,बदलाव की करती है पुकार। बुराइयों को देता है चुनौती,उठा कलम…

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Naye Saal Par Kavita | नए साल पर कविता – आया पावन सवेरा

Naye Saal Par Kavita - आप पढ़ रहे हैं नए साल पर कविता :- Naye Saal Par Kavitaनए साल पर कविता नये साल का आया पावन सवेरापावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा। फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायेंभौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायेंधरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरवआओ मन…

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मन की व्यथा पर कविता | माता-पिता की वेदना पर लिखी कविता

मन की व्यथा पर कविता - आप पढ़ रहे हैं Man Ki Vyatha Par Kavita :- Man Ki Vyatha Par Kavitaमन की व्यथा पर कविता छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। समझा था जीवन की ज्योति सा बनकर,बनेगा सहारा बुढ़ापा तिमिर में।कट जाएगा अवशेष जीवन कठिन पलपलकों का सपना सजाया था दिल में । कहूं दोष खुद का या कोसूं मुकद्दर,बना आज जीवन कुम्हलाता नीरज ।दीपक समझकर संभाला था जिसको,जलाया मुझे बन दुपहरी का सूरज। बताऊं कैसे व्यथा अपने मन की ,बिठाऊं कहां से कहां अपनेपन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को । कर त्याग केंचुल सा जननी की ममता,गया बन निर्मम किस सपने में खोये ।न बन बेखबर हो सजग मेरे प्यारे,गया टूट बन्धन तो फिर जुड़ न पाये । किया क्या न पूजा दुआ तेरे खातिर,कर दी आहूति खुद के सपने सजोये ।बस तू ही था सच्चे सपने निराले,हम रखे सदा तुझको दिल से लगाये । सदा सोचता कि भूल जाऊं किये को,भीगी आंख से देखता हूं गगन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को ।  अभिशाप बन न तू इकलौता औलाद,क्यों बन गया है तु हत्यारा जल्लाद।खुद सोंच गया छोड़ यदि तेरी दुनिया,पायेगा फिर न पिताजी का आह्लाद।। मैं देखा करतातेरा राह पल पल,हुआ शाम कब आयेगा नेत्र-तारा ।तनहा ठगा साहो जाता बेगाना,तु था मेरी दुनिया, प्यारा, दुलारा । मिलने को तुमसे तरसता हूं मैं अब ,बैठ पास ले रोक दिल के ज़लन को ।छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को । मां, बोलो कम आप खुद को संभालों सिवाय आपके कौन सहारा मेरा ।दिल को पत्थर बना समझो मैं बांझ थी,खाके दो जून रोटी रहें हम पड़ा । न सताओ कभी आपने मां बाप को,धर के मंदिर में बैठे भगवान है ।कर लो तीरथ बरतसब जगह घूम कर,सबसे पावन ही इनके चरण धाम है जीना है जीवन यह अंतिम घड़ी तक,बिसारा भले है पर देगा कफन तो ।भुलाते रहो तब तलक मन की पीड़ा,जब तक न जाते हैं दूसरे वतन को। जब गैर होते हैं अपनों से बढ़करहम इसकेहैं अपने पराये नहीं हैभले छोड़ कर वह रहे दूर हमसेहम उसके बिना रह पाये नहीं है। बने वह हमारे लिए नागफनी साहमें तुलसी बनके रहना पड़ेगाछोटी सी जीवन बड़ी हो चली हैमिला गर है जीवन तो जीना पड़ेगा। बेटी गर होती तो वह चाह करतीजी आज करता है तुमसे मिलन को छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। इतना भला क्या कि रखा है घर मेंनही भेज देता किसी आश्रम मेंदेखा है बहुतो के लाशों का सिदृदतलाशों के उपर से बिकते कफ़न को छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ासुलगते सुलगते जलाता है तन को। पढ़िए…

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कविता थकान का पसीना | Kavita Thakaan Ka Paseena

कविता थकान का पसीना - आप पढ़ रहे हैं Kavita Thakaan Ka Paseena :- Kavita Thakaan Ka Paseenaकविता थकान का पसीना मोती सा मस्तक पर झिलमिललुढ़क रहा धीरे धीरेझर झर झरता पग तल रज में ,जाता चूम चरण तेरे, इस मोती में भाग्य झलकतातेरा जी हो लेकर चल,तन मन का यह…

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