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कविता मन बनाए होंगे

कविता मन बनाए होंगे

चौदह जनवरी के आते ही तुमने,
गुड तिल के लड़ूं तो बनाए होंगे।

अब सर से पाप उतरने के लिए,
गंगा मे भी डुबकी लगाए होंगे।

अब खस्ता हालत पर काबू करके,
लूटने के लिए नजरे गड़ाए होंगे।

अब बीजेपी का दामन छोङ कर
सपा मे जाने का मन बनाए होंगे।

अब सपथ पत्र मे नाम भरकर,
कुछ पुराने ही काम गिनाए होंगे।

अब ठंड बहुत है ऐसा बोल कर
किसी महफ़िल मे रंग जमाये होंगे।

दर्द मे लता दी का गीत छोङ कर,
हिमेश की गजल तो गुनगुनाएं होंगे।

अब अपनो को दर किनारा करके,
किसी को तो खास बनाए होंगे।

पुराने आशियाने को छोङ कर,
आशमान मे भी घर बनाए होंगे।

अय्याशी करने का समान भी,
समुंदर पार से भी मगाये होंगे।

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रचनाकार का परिचय

मोहन त्रिपाठी

यह कविता हमें भेजी है मोहन त्रिपाठी जी ने रीवा मऊगंज से।

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