आप पढ़ रहे हैं ज़िन्दगी की चाहत कविता ( Zindagi Ki Chahat Kavita ) :-

ज़िन्दगी की चाहत कविता

ज़िन्दगी की चाहत कविता

मिलन विरह की उलझन से
दुख तम से मिल जाती राहत
मृदुल, मधुर मुस्कानें भर दूं
है मेरी छोटी सी चाहत ।

सूरज निकलता, तपती दोपहरी
ढ़ल ढ़लती संध्या होती
हर प्रहर मैं,मीठेपन की
हंसकर मुहर ,लगा जाती ।

निशा ने मानों छिप छिप कर
अंजन छिटका कर सो जाती
मैं चांद की पूजा, विनती कर
मैं चांदनी उनसे, बिखरा देती ।

हो दिन निर्मल, उजियारी रातें
शूलों को भी फूल बना दूं
आतप पथ पर छाया भर दूं
असीम मुस्कानें अंकित कर दूं ।

वर्तमान का सत्य यही है
मौसम कर रहा बेमानी
सहारा ,सहयोग में नहीं कोई
कोई करें ना आनाकानी ।

मैं अन्तर्मन में अर्चित कर
मधुरस भर, बूंदें छिटकाती
दृढ़ संकल्पित हो जाऊँ
निमित्त बन जाऊँ, मैं खुशियों की ।।

पढ़िए :- हिंदी कविता जिंदगी का कारवां | Zindagi Ka Karwaan


रचनाकार का परिचय

इली मिश्रा

यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।

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