Maa Vasundhara Kavita आप पढ़ रहे हैं माँ वसुंधरा कविता :-
Maa Vasundhara Kavita
माँ वसुंधरा कविता
आकाश प्रांगण के रंग मंच पर
अनवरत नृत्य करती पृथ्वी
अद्भुत तन्मयता स्पष्ट दिखती
लक्ष्यनिष्ठा है इनमें गहरी
परिधि के चरण चिह्न पर रहती ।।
प्रकाश और तिमिर की यात्रा
वसुन्धरा की धुरी घूर्णन से होती
सूरज, चांद की आलौकिक आभा
दिवा, निशा के समय से दिखतीं ।।
नूतन प्रभात संग छिटकती सुषमा
सातों किरणें भरतीं अरुणिमा
लहराते शस्य से छाई हरीतिमा
प्रखरित होती अवनि की गरिमा ।।
धरती-अम्बर की रूपहली ज्योत्स्ना
दिशाएँ झूम झूम हो रहीं रसना
जीवन है, ना रहे अब कोई तृष्णा
धरा सुरभित, सुसज्जित रहे हे कृष्णा ।।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।
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