Maa Vasundhara Kavita | Beautiful Poem On Mother Earth
Maa Vasundhara Kavita आप पढ़ रहे हैं माँ वसुंधरा कविता :-
Maa Vasundhara Kavita
माँ वसुंधरा कविता

आकाश प्रांगण के रंग मंच पर
अनवरत नृत्य करती पृथ्वी
अद्भुत तन्मयता स्पष्ट दिखती
लक्ष्यनिष्ठा है इनमें गहरी
परिधि के चरण चिह्न पर रहती ।।
प्रकाश और तिमिर की यात्रा
वसुन्धरा की धुरी घूर्णन से होती
सूरज, चांद की आलौकिक आभा
दिवा, निशा के समय से दिखतीं ।।
नूतन प्रभात संग छिटकती सुषमा
सातों किरणें भरतीं अरुणिमा
लहराते शस्य से छाई हरीतिमा
प्रखरित होती अवनि की गरिमा ।।
धरती-अम्बर की रूपहली ज्योत्स्ना
दिशाएँ झूम झूम हो रहीं रसना
जीवन है, ना रहे अब कोई तृष्णा
धरा सुरभित, सुसज्जित रहे हे कृष्णा ।।
पढ़िए :- धरती पर कविता | धरती मानव की जान है
रचनाकार का परिचय

यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।
“ माँ वसुंधरा कविता ” ( Maa Vasundhara Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।