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पर्यावरण पर कविता
Paryavaran Par Kavita

Paryavaran Par Kavita

शस्य-शस्य द्रुम दल हैं
वसुन्धरा का आवरण
प्रकृति से सौगात मिली
किया धरा ने सहर्ष वरण ।।

सघन वनों से सजी अवनि थी
आलौकिक, मोहक था संसार
खिलते,मुस्काते थे सुमन अनंत
अलि, कलियाँ संग करते,मृदुल झंकार।

तृप्ति,स्मित,रश्मियों के बन्दनवार
नव पल्लव झूम-झूम करते गुंजार
उजियारी चांदनी भरी रातें थीं
स्वर्णिम इतिहास के वो दिन थे ।

“कल” कारणों की दुनिया में
अब संधि हुई प्रकाश -अंधकार की
पाषाणी, इस्पाती, नगर बने
मुस्कानें अंकित ना हो पायीं ।

चलो करें शुरुआत नई
धरा बनायें अब तेजसमयी
दीपित रहे, ये अचल प्रतिमा
सुशोभित रहे, सदा हरीतिमा ।

वृक्ष हमारे,परम मित्र और प्राण
वृक्षों की रक्षा, वृक्ष ही शान
वृक्षारोपण महोत्सव से है कल्याण
गायें पर्यावरण का आज स्वस्ति गान ।।

पढ़िए :- पर्यावरण संरक्षण पर कविता | Paryavaran Sanrakshan Kavita


रचनाकार का परिचय

इली मिश्रा

यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।

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