Guru Gobind Singh Ji Kavita – आप पढ़ रहे हैं गुरु गोविंद सिंह जी पर कविता :-
Guru Gobind Singh Ji Kavita
गुरु गोविंद सिंह जी पर कविता
पुण्यश्लोक गुरु गोविंद सिंह की गाथा गाते हैं।
जन्मदिवस को प्रकाश पर्व कह हम मनाते हैं।
गुरु तेग बहादुर घर जन्मा देदीप्यमान सितारा
ईश्वर अंश माँ गुजरी ने पटना धरती पर उतारा।
धर्म के लिए कुर्बान हुए बहादुर धर्म -निष्ठ पिता
नवे वर्ष में गुरु बने दुखी मन ,जलाई पिता की चिता
अंतिम सिक्खों के गुरु आप गुरु परंम्परा खत्म की।
एक नए पँथ खालसा की आपने स्थापना की।
खालसा धर्म चला पंज प्यारो को अमृत छकाया
अमृत पी , वाह गुरुजी दा खालसा , वाह गुरुजी दी फतह
नारा लगाया।
पाँच ककार को सिक्खों का जीवन सिद्धांत बनाया।
केश , कड़ा , कृपाण , कंघा,कच्छा अनिवार्य बताया।
वीर योद्धा , भाषा विद , कई ग्रन्थों के थे रचना कार।
गुरु ग्रँथ साहिब को गुरु मानो , इनका नया विचार।
सच्चाई धर्म की राह पर हुआ था परिवार कुर्बान
जान देकर भी बचाई वीरों ने अपने धर्म की आन।
प्राण जाए धर्म न जाए यही इनका मूल मन्त्र था।
वीरता से सिक्खों की थर्राया मुगलिया तंत्र था।
धोखे से मुगलों ने गुरु गोविंद जैसे सिंह की जान ली।
सभी भारतवासी देते हमारे वीर सपूत को श्रद्धांजलि
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है ललिता जोशी जी ने कोलकाता से।
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