तुम याद बहुत आती हो कविता
हम क्या सोचते है और क्या होता है
ना जाने ये दिल क्यों रोता है,
नजरों से तुम सब कुछ कह जाती हो ,
तुम याद बहुत आती हो।
तेरे बिन हर पल बुरा लगता है,
तेरा चेहरा सामने हो तो
मन पराग सा खिलता है ,
आँखें बंद करुँ तो बस
तुम ही दिख जाती हो,
तुम याद बहुत आती हो।
तुम मुस्कुरा दो तो मानो
कली खिल उठती है ,
फूल ही नहीं
फूल की खुशबु भी जग उठती है,
तुम्हारी भोली सूरत मानो
जैसे पत्थर की मूरत,
तुम्हारे विना अब ये जिंदगी
जैसे एक उदासी हो,
तुम याद बहुत आती हो।
ना जाने रब ने
कैसे बनाया तुम्हें?
हर रंगों से
खूब सजाया तुम्हें,
तुम तो एक नूर परी हो
जो हम को मोहित कर जाती हो ,
तुम याद बहुत आती हो।
नाम :- प्रकाश रंजन मिश्र
पिता :- श्री राज कुमारमिश्र
माता :- श्रीमती मणी देवी
जन्मतिथि :- 05/05/1996
पद-: सहायकप्राध्यापक, वेद-विभाग(अ.), राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर परिसर, जयपुर (राजस्थान)
अध्यायन स्थल-: श्रीसोमनाथसंस्कृतविश्वविद्यालय,वेरावल, (गुजरात)
आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान वेद विद्यालय मोतिहारी (बिहार)
वेद विभूषण वेदाचार्य(M.A), नेट, गुजरात सेट, लब्धस्वर्णपदक, विद्यावारिधि(ph.d) प्रवेश
डिप्लोमा कोर्स :- योग, संस्कृतशिक्षण,मन्दिरव्यवस्थापन,कम्प्युटर एप्लिकेशन।
प्रकाशन :- 7 पुस्तक एवं 15 शोधपत्र,10 कविता
सम्मान :- ज्योतिष रत्न, श्री अर्जुन तिवारी संस्कृत साहित्य पुरस्कार से सम्मानित
स्थायीपता :- ग्राम व पोस्ट – डुमरा, थाना -कोटवा ,जिला- पूर्वी चंपारण (बिहार)
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