(Budhi Maa Par Marmik Kavita ) बूढ़ी माँ पर मार्मिक कविता :- प्रिय पाठकों, माँ के चरणों में स्वर्ग होता है हमने सूना है किन्तु यह बातें शायद फिल्मों में या किताबों तक ही रह गयी हैं। हमारे समाज की कितनी बड़ी बिडम्बना है कि जिस माँ ने जन्म दिया, अपने बच्चों को अपनी ममता के साए में पाल पोश कर बड़ा किया।वही बच्चे जब पढ़ लिखकर बड़े हो जाते हैं। ऐसी ही एक बूढ़ी माँ की हालत को समर्पित है यह कविता :-

बूढ़ी माँ पर मार्मिक कविता
बूढ़ी माँ पर मार्मिक कविता

एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती हैं।
अपने ही अश्कों से दामन वो भिगोती है।।
एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती हैं।

क्या जुल्म करते है
उस पर उसके अपने,
हो गये चूर उसके
जितने भी सजे सपने,
अब अपना भी बोझा वो तन्हा ढोती है।
एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती है।।

कुछ कैसे कहे किसको
किसे दर्द सुनाये वो,
जख्म मिले जो उसको
किसे जा के दिखाये वो,
चौका बर्तन संग में कपड़े भी धोती है।
एक घर में बूडी माँ दिन रात रोती है।।

अजब खेल है मालिक
इस तेरे जमाने का,
क्या हक़ नहीं है उसको
हक़ अपना पाने का,
बस बेटो की खुशियां हरपल संजोती है
एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती है।

एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती हैं।
अपने ही अश्कों से दामन वो भिगोती है।
एक घर में बूढ़ी माँ दिन रात रोती हैं।

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रचनाकार का परिचय

कवि अनमोल रतनयह कविता हमें भेजी है कवि अनमोल रतन जी ने रायबरेली, उत्तर प्रदेश से।

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