18 मार्च 1999 को अरवल जिला के सेनारी में वामपंथियों के विरूद्ध लड़ते हुए शहीद हुए 34 परशुराम वंशजों की सच्चाई को बयां करने हेतु एक कविता ” ब्रह्मजन शहीद स्थल सेनारी की पुकार ”
ब्रह्मजन शहीद स्थल सेनारी की पुकार
किसान विरोधी घटित हुए कार्य का आधार हूं,
नरसंहारो के अग्नि में शवो का जलता हुआ आग हूं…
लोगों के चीखो की आवाज,
मैं वहीं घटित निर्मम हत्या वाली वो आग हूँ…
अन्याय के पक्ष में निर्ममता की हद हुई पार,
मैं जज के द्वारा कहा रेयरेस्ट ऑफ रेयरेस्ट वाला राग हूं…
अपनों के शव को भी न पहचान सकु,
कई बहनों का उजड़ा हुआ कीमती सुहाग हूँ…
कई युवाओं की मौत के कारण,
एक खत्म हुई पीढ़ी का बचा हुआ वहीं राख हूं…
नक्सल और सत्ता से कुचला हुआ,
ब्रह्मजन के विरुद्ध घटित हुआ मै खूनी राग हूँ…
यातना के विरुद्ध उठे शस्त्र को,
जब दबाया गया उसके साक्षी अरवल का एक भाग हूँ…
क्रान्ति क्षेत्र में जो रहा समाज सहयोगी,
कटे उसके योद्धा उसी सेनारी नरसंहार का आग हूँ…
राष्ट्र विरोधी वामपंथ के विरुद्ध,
लड़ने वाले शहीदों के स्मारक का एक भाग हूं।
बिहार के अन्नदाताओं का एक तीर्थ,
मै जहानाबाद,नंदी,भोजपुर, बारा जैसा ही एक बाग हूँ…
एक नही दो नही पूरे 34,
नरसंहारो के शवो का जलता हुआ मै आग हूं…
इस निर्मम हत्या की सुध नहीं किसीको,
सिर्फ अब अंकित जैसे युवाओं के दिलों में बचा हुआ आग हूं…
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रचनाकार आदरणीय अंकित पाण्डेय जी काटरगंज जीरवाबाड़ी साहिबगंज, झारखंड से हैं। रचनाकार सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी कार्यरत हैं।
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